________________
रायपसेणइय सुनो
सार
चित्त ! मारुं शरीर थाकी गयुं छे माटे हवे रथने तुं पाछो वाळ.
सारथिरथने पाछो वाळी मियवण उद्यान तरफ हंकारी गयो उद्यान पासे पहोंचतां तेणे राजाने क
स्वामी ! आणि उद्यान छे. अहीं घोडाओने सारी रीते थाक खवडावीप अने तेमनो बधो श्रम आपणे दूर करो नाखीप. [१६२] राजाप 'हा' पाडतां ते उद्यानमां केशी कुमारश्रमणना ऊतारानी पासे जई चित्ते घोडाओने रोकी राख्या रथने स्थिर कय अने घोडाओने छोडी नाखी तेमनो भ्रम दूर थाय तेवी प्रवृत्ति शरू करी.
राजा पण रथथी नीचे ऊतरी सारथिनी ए प्रवृत्तिमां जोडायो अने घोडाओने धीमे धीमे फेरववा लाग्यो. एम करता करतां मियवणमां मळेली मोटी सभामां बच्चे बेसी मोटा अवाजे कहेता केशी कुमारश्रमणने राजाए जोया.
जोतां जतेने विचार आयो के 'जड लोको ज जडनी उपासना करे छे, मुंड लोको ज मुंडनी पूजा करे छे, मूढ लोकोज मूढनो आश्रय खोळे छे, अपंडित लोको ज अपंडितनो आदर करे छे अने अज्ञानी लोको ज अज्ञानीनुं बहु मान करे छे' तो आ वळी कोण जड मूढ मुंड अपंडित अने अज्ञानी पुरुष छे जे शरमाळ अने शरीरे हृष्टपुष्ट देखावडो लागे छे ? ए शुं खाय छे ? शुं पीये छे ? एवं १० शुं खाधा पीधाथी पनुं शरीर आवुं तगमगी रहुं छे ? अने वळी पशुं दे छे जेने लीधे आवडी मोटी मानवमेदनीनी बच्चे बेठो बेठो ते मोटा वराडा पाडे छे ?
आम विचार आवतां ज राजाए सारथिने कद्दुः चित्त ! जोतो खरो आ लोको केवा जड छे जे पेला मोटा जडनी सेवा करे छे अरे ए मोटो जाडो जड तेओनी सामे केवा मोटा बराडा पाडीने कोण जाणे शुंय समजावे छे ! गम्मत तो ए छे के आवा नफकरा अने जामी गएला जड लोकोने लीधे आपणे आपणी पोतानी पण उद्यानभूमिमां सारी रीते हरी फरी शकता नथी. मात्र विसामो १५ अने शांति मेळवावा माटे तो अहीं आव्या अने अहीं तो माथाना वाळ ऊंचा थई जाय पवा बराडा करने अथडाया करे छे. [१६३] चित्ते राजाने कः
Jain Education Interational
For Private & Personal Use Only
श्रमण तरफ पएसीनी
अरुचि
॥११३॥
www.jainelibrary.org