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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार केशी कुमारभ्रमणे चित्त सारथिने अने तेनी साथेनी मोटी जनताने चतुर्याम धर्मनो उपदेश कर्यों पटले के सर्व प्रकारनी हिंसाथी विराम करवो, सर्व प्रकारना असत्यथी विराम करवो, सर्व प्रकारनी चोरीथी विराम करवो अने सर्व प्रकारना वहिद्धादानथी ̈ विराम करवो. [१५०] केशी कुमारभ्रमणे कहेली आ हितशिक्षाओ सांभळीने चित्त सारथि प्रमुदित थयो अने श्रमणने त्रण प्रदक्षिणा दई हाथ जोडी आ प्रमाणे बोल्योः हे भगवन् ! तमे कहेला निर्ग्रथ प्रवचनमां श्रद्धा करूं छु, विश्वास धरूं लुं, हे भगवन् ! तमोप जणावेलुं निर्ग्रथ प्रवचन मनेरुचे छे, ते प्रमाणेना पालन माटे ऊजमाळ थउं छु अने हे भगवन् ! जेवुं तमे कहेलुं छे तेवुं ते, मने साधुं लागे छे. तमारी पासे आ घृणा उग्रो भोगो अने इभ्यो वगेरेप पोतानुं पुष्कळ सोनुं रूपं धन धान्य बळ वाहन भंडार कोठार अने विशाळ अंतःपुर ए बधांनो परित्याग करीने अने प बधुं धन जनतामां बहेंची दईने मुंड थई गृहवास छोडी अणगारपणुं स्वीकार्य छे पण हुं तेम करवा समर्थ नथी. हुं तो आप देवानुप्रियनी पासे पांच अणुव्रतवाळो अने सात शिक्षावतवाळो एम बार प्रकारनो गृहिधर्म १० स्वीकारवा शक्तिमान हुँ. केशी कुमारभ्रमण बोल्याः हे देवानुप्रिय ! तने सुख थाय तेम कर, तेमां विघ्न न आववा दे. पछी केशी कुमारभ्रमण पासे चित्त सारथिप पूर्वे जणावेलो गृहिधर्म स्वीकार्यों अने तेमने वांदी नमीने पाछो प सारथि पोताने ऊतारे आवी पहोंच्यो. ९७ स्थानांगसूत्री टीकामां ( पृ० २०२) बहिद्धा एटले मैथुन अने आदान एटले परिग्रह एम जणावेलुं छे अथवा स्त्रीपरिग्रह वा बीजो कोई पण प्रकारनो परिग्रह 'बहिद्वादान' मां समाई जाय छे. केशी कुमारश्रमण भगवान पार्श्वनाथना अनुयायी हता माटे तेमणे चार महाव्रतोने उपदेशेला छे. Jain Education Inmational For Private & Personal Use Only १५ ॥१०५॥ www.ainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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