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________________ रायसेनइय सुत्तनो सार ॥ १०४॥ Jain Education आम विचारीने प नगरीनो जनसमुदाय महाजन कोय चैत्यमां ज्यां केशी कुमारभ्रमण ऊतर्या हता त्यां तेमना दर्शनार्थे पहोंच्युं. केशी कुमारभ्रमणे पोतानो पासे आवेला लोकोने तेमने योग्य हितशिक्षाओं कही संभळावी. [१४८] ते वखते त्यां जता के त्यांथी पाछा फरता लोकोनो घोंघाट सांभळीने चित्त सारथिना मनमां एम थयुं के 'शुं आजे आ नगरी इंद्र स्कंद रुद्र मुकुंद नाग भूत यक्ष स्तूप चैत्य वृक्ष गिरि गुफा कृवो नदी सरोवर के समुद्र संबंधी कोइ उत्सव छे के जेने लईने आ घणा उग्रो भोगो राजन्यो क्षत्रियो इक्ष्वाकुओ ज्ञातो कौरव्यो ब्राह्मणो भटो योधो लिच्छविओ मलकिओ प्रशास्ताओ इभ्यो इभ्यपुत्रो अने सेनापतिओ बगेरे नाही धोईने आवजा करी रह्या छे, केटलाक घोडे चडेला छे, केटलाक हाथीप बेटेला छे अने केटलाक टोळे वळीने पगे चालता आवजा करे छे' ? लोकोनी ए दोडधामवाळी आवजानुं कारण जाणवा चित्त सारथिए पोताना कंचुकी पुरुषने तपास करवा मोकल्यो, तेणे यरावर तपास करी खरा समाचार मळतां ज आवीने चित्त सारथिने विनयपूर्वक जणान्युं के हे देवानुप्रिय ! आजे आ नगरीमां कोइ इंद्र के सागर वगेरेनो उत्सव नथी पण पार्श्वापत्य केशी कुमारभ्रमण आ नगरीना कोहय नामना चैत्यमां आवीने उतरेला छे अने तेमना दर्शनार्थे जया माटे आ वधी दोडधाम घोंघाट थई रह्यां छे. ११० [१४९] पोताना संदेशवाहके कहेली ए हकीकत सांभळीने चित्त सारथि खुश थयो अने तेने पण केशी भ्रमण पासे जवानुं मन थयुं, पथी तेणे कौटुंबिक पुरुषोने बोलावीने अश्वरथ जलदी तैयार करी लाववानो आदेश कर्यो. " रथ आवी पोचतां तो ते सारथि नाह्यो, बलिकर्म करें, मंगलमय शुद्ध वस्त्रो पहेर्यो, एक जणे पना उपर छत्र धर्यु अने प ते, रथमां बेसी मोटा समुदाय साथै केशी कुमारभ्रमणना उतारा भणी जवा नीकळ्यो. तेमनी पासे पहोंचतांज घोडाओ ऊभा राख्या, १५ रथने भावी दीधो अने पोते रथथी ऊतरी केशी कुमारश्रमणनी प्रण प्रदक्षिणा करी, तेमने चांदी नमी हाथ जोडी विनयपूर्वक सेवा करतो तेमनी सामे बेठो. For Private & Personal Use Only चित्त सार थिनुं के शि कुमार पासे wwlainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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