SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायपसेणइय सुत्सनो सार ॥९८॥ दिग्भागमां-ईशान खूणामां वधी ऋतुओमां फळोथी लच्युं रहेतुं सुन्दर सुगन्धी शीतळ छायायालु अने सर्व प्रकारे रम्य नन्दनवन जेवू मियवण नामे उद्यान हतुं. ते नगरीनो राजा महाहिमवन्त जेवो प्रभावशाळी पयेसी" राजा हतो. ए राजा अधार्मिक, अधर्मिष्ठ, पएसी राजा धर्मने नहि अनुसरनारो, अधर्मने ज जोनारो, अधर्मने फेलावनारो हतो. पना शील तथा आचारमा क्याय धर्मने नामर्नु पण स्थान सूचवेली छे अने कोशल देशमा (जनदृष्टिए अयोध्या अने तेनी आसपासनो प्रदेश)विहार करता करता कुमार काश्यप आ नगरीमा आब्या एम सूची एने कोशलोना नगर तरीके जणावेली छे. ("येन सेतव्या नाम कोसलानं नगरं तद् अबसरि"-दीघनिकाय भाग २ पृ. ३१६) ९२ मूळमां आ माटे 'पएसी' शब्द वपराएलो छे , टीकाकार आ माटे 'प्रदेशी' शब्द वापरे छे अने आवश्यकमां 'पदेसी, शब्द सूचवे लो छे आ राजा संबंधी जे हकीकत हवे पछी आ, रायपसेणइय सूत्रमा आवनारी छे तेने लगभग मळती हकीकत 'दीघनिकाय' ना पायासिसु'तंत' नामना लांबा प्रकरणमा आवेली छे. ('पायासि शब्दमां 'यानी पहेलां जे काना जेवू निशान छे ते, खरेखर कानो नयी पण पडिमात्रानी लिपिमा | ए काना जेवू निशान 'य' उपरनी मात्रा छे एटले एनुं खरु वाचन 'पयेसि' थाय पण मात्रा वांचवानी भूलना परिणाम अने 'य' पछी एक कानो वधी जवाने कारणे 'पयेसि' ने बदले 'पायासि' थयुं होय एम न बने ) ए सुत्ततमा मुख्य प्रश्नकार राजा 'पायासि छे, तेमां तेने १० राजन्य वंशनो जणावेलो छे अने तेनो संबंध कोशल वंशना राजा 'पसेनदि साथे बतावेलो छे. रायपसेणइयमा जेम राजा पयेसि ने अत्यंत पापिष्ट तरीके वर्णदेलो छे तेम दीघनिकायमा नथी. परंतु एम एम तो कहेलं छे के- ए राजाने पापमय विचारो थयेला; परलोक नथी, औपपातिक सत्ता नथी अने सुकृत तथा दुष्कृतनो कोइ प्रकारनो फलविपाक -परिणाम-नथी. आ राजा विशे बीजी कोई अतिहासिक माहिती मळी नथी. (तेन खो पन समयेन पायासि राजञ्जो सेतव्यं अध्झावसति x x x पसेनदिकोसलेन दिन्न राजदेय्यं x x x पायासिराजञस्स एवरूपं पापकं दिद्विगतं उत्पन्नं होति इति पि नत्थि परलोको, नत्थि सत्ता ओपपातिका, नत्थि सुक्तदुक्कतानं कम्मानं फलविपाको ति-दीघनि काय भाग २ पृ० ३१६-३१७) a l For Private Personel Use Only |२५| nin Education rary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy