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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार सिद्धायतनमा ज्यां देवच्छंद छे अने जे बाजुए जिनप्रतिमाओ छे ते तरफ जई ए सूर्याभदेवे अने तेना सकळ परिवारे तेमने | सूर्याभदेवे प्रणाम कर्या, पछी तेमने मोरपीछथी जी, सुगंधी पाणीथी एखाळी, सरस गोशीर्षचंदननो लेप कयों, सुवासित अंगलूछणाथी लेमने श्रीजिनप्रलूंछी अने पछी ते प्रतिमाओने अक्षत पवां देवदृप्य युगल पहेराव्या. त्यारवाद ते सवस्त्र प्रतिमाओ उपर फूल, माळा, गंध, चूर्ण, | तिमानी वर्ण, वस्त्र, आभरण वगेरे चडावी तेमने लांबीलांबी माळाओ पहेरावी अने पांचे प्रकारनां पुष्पोना पगर भर्या. पछी ते जिनप्रतिमा-| पूजा करी ओनी सन्मुख रूपेरी अखंड चोखाना स्वस्तिक दर्पण बगेरे आउआठ मंगळो आलेख्यां, चैडूर्यमय धूपधाणामां सुगंधो धूप सळगावी ते प्रत्येक प्रतिमाओ आगळ धूप को अने पछी गंभीर अर्थवाळा मोटा पकसो ने आठ छंदो बोली तेमनी स्तुति करी. ॥९॥ ८९ टीकाकारे लखेलु छे के-"सूर्याभदेव बांदे छे एटले ते जिनप्रतिमाओने चैत्यदनविधिपूर्वक बदि छे अने पछी नमे छे एटले प्रणिधानादिकना योगपूर्वक नमे छे' एवो केटलाकनो मत छे. त्यारे बळी बीजा केटलाक तो कहे के "चैत्यवंदननो जे प्रसिद्ध विधि छे ते तो विरतिवाळाओने ज बंधवेसे एवी छे. तेमा ईर्यापयिकीपूर्वकनो काउस्सग्ग आवतो होवाथी विरतिवाळा सिवायना बीजाओने ए विधि करबो उचित नथी, माटे 'बाद ' एटले चैत्यवंदनपूर्वक वांदे छे एम नहि पण सामान्यपणे वांदे छे अने 'नमे छे' एटले आशय-भाव-वृद्धिने कारणे आदर- ||१० पूर्वक नमे छे" एवो अर्थ समजवो. सूर्याभदेवे करेली चैत्यवंदनरूप स्तुतिना प्रसंगमां आ प्रकारे मोटो मतभेद छे.” अहीं जे तध्यरूप होय ते तो परम ऋषि केवळी भगवंतो जाणे" आम कहीने ऐ मतभेदोथी गुंच्वाईने टीकाकार छूटी जता जणाय छे, पण ए बाबत कोई प्रकारनी स्पष्टता करता नथी. वळी "आ पछी जे हकीकत आवे छे ते संबंधे पण मोटो पाठभेद छे” एम टीकाकार जणावे छे. आ बधो वाचनाभेद अने उक्त मतमतांतरी ध्यानमा राखौने आ प्रकरणने समजवु जोईए. “ मोटा छंदवाळा १०८ श्लोक द्वारा सूर्याभदेवे स्तुति करेली” एम मूळमां कहेलुं छे पण ए छंदो क्या प्रकारना हता ए विशे कशु जणावेलुं नथी. स्तुति करतां सूर्याभदेवे शक्रस्तव पण कहेलं छे परंतु ते अतिप्र-१२ सिद्ध होवाथी अहीं पूरू आपेलु नथी. ("वन्दते ताः प्रतिमाः चैत्यवन्दनविधिना प्रसिद्धेन, नमस्करोति पश्चात् प्रणिधानादियोगेन इति एके. अन्ये For Private & Personal Use Only Jain Education emanal wir.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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