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रायसेनइय सुत्तनो
सार
॥९२॥
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घोडानी लाळ जेवुं नरम, सुंदर वर्ण अने स्पर्शवाळु अने जेने छेडे सोनुं जडेलुं छे तेवुं स्फटिक जेवुं ऊजळु धोळु देवदूष्य "युगल तेणे पहेर्नु पछी हार, अधहार, एकावळ, मोतीनी माळा, रत्नावळ, अंगद, केयूर, कडां, बेरखां, कणदोरो, दसे आंगळीप वेढ वींटीओ, छाती उपर दोरो; मादळियुं, कंठी, झूमणु, काने कुंडळ अने माथे चूडामणि मुगट वगेरे आभरणो पहेरी पोताना देहने प सूर्याभदेवे ठीक ठीक सजाव्यो.
मिंक व्यव
वळ, गुंथेली वटेली भरेली अने एक बीजाना नाळथी जोडेली एवी चारे प्रकारनी माळाओथी पोतानी जातने कल्पवृक्षनी पेठे ५ साय जाण्यो सुशोभित करतां तेणे दिव्य पुष्पमाळ पण पहेरी.
[१३८] प रीते अलंकृत थपलो ते सूर्यभिदेव व्यवसायसमाने प्रदक्षिणा करतो तेमां आव्यो अने त्यां सिंहासनारूढ थयो. पछी तो तेना सामानिक सभ्योप तेनी समक्ष त्यांना पुस्तकरत्नने मूक्युं तेणे तेने उघाडी वांची तेमांथी धार्मिक व्यवसायने लगती समजुती मेळवी लोधी.
पक्रम पूरो थया बाद ते, त्यांथी पूर्वद्वारे नीकळी नंदा पुष्करिणीए गयो. त्यां गोठवेला सोपानद्वारा पुष्करिणीमां ऊतरी तेणे पोताना हाथपग पखाळ्या, पछी चोक्खा परमशुचिभूत थई हाथीनी मुखाकृतिनी जेवी पाणीथी भरेली एक मोटी धोळी रजतमय झारी अने पुष्करिणीनां कमळो वगेरे लई त्यांथी ते सिद्धायतन तरफ जवा नीकळ्यो.
सूर्याभदेवे पुस्तक वांची घा
८८ भगवान महावीरना समसमयी लोको बे वस्त्रो पहेरता ए हकीकत, ते समयनी वस्त्रपरिधानपद्धतिनो उल्लेख अने बीजां केटलॉक प्राचीन चित्रो उपरथी समजी शकाय एम छे. ए रीते स्वर्गीय देवो पण भारतवर्षनी ए वस्त्रपरिधानपद्धतिने अनुसरता होय एम आ वर्णन सूचित करे छे. वस्त्रनी बनावटनुं वर्णन जोतां ते समयनी वस्त्ररचनानी कळा परमप्रकर्षने पामेली छे ए तो चोक्खु जणाय छे. सूत्रकारे वर्णवेलुं वस्त्र आजनां वस्त्रयंत्रो पण नथी बनावी शकतां, त्यारे ए वस्त्र ते समयना हाथवणाटनी बनावट छे ए, वस्त्ररचनानी कळानो परमप्रकर्ष नहि तो बौद्धुं शुं ?
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