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इस सुत्नो सार
| यनां, डींटियां सुवर्णमय, अंकुराओ जांबूनदमय अने फूलफलभर विचित्र मणिरत्नमय सुरभि छे. ए फळोनो रस अमृतसम मधुरो | छे. ए रीते सरस छाया, प्रभा, शोभा अने प्रकाशवाळां ए चैत्यवृक्षो विशेषमा विशेष प्रासादिक छे.
वृक्षो उपर आठ आठ मंगळो वजो आने छत्रो वगेरे शोभी रहेला छे अने पमनी-ए वृक्षोनी-फरता शिरीष वगेरे बीजां पण | अनेक वृक्षो आवेलां छे.
ए चैत्यवृक्षोनी आगळ आठ योजन लांबी पहोळी अने चार योजन जाडी पवी सर्वमणिमय बीजी अनेक मणिपीठिकाओ | ५ आवेली छे. ___प दरेक पीठिकाओ उपर साठ योजन ऊंचा अर्ध क्रोश उंडा अने अर्ध क्रोश पद्दोळा एवा विशिष्ट प्रकारना वज्रमय अनेक महेन्द्रध्वजो खोडेला छे, तेमनी उपर पथनथी हालती नानी नानी अनेक पताकाओ, आठ आठ मंगळो, ध्वजो अने छत्रो वगेरे बधुं लहेरी रहेलुं छे.
८२ अहीं पण समितिवाळो आवृत्तिमा मूळ पाठ अने टीकानो पाठ बन्ने परस्पर असंगत छपाएला छे व्यारे मूळमां 'जोयण' छे त्यारे | टीकामां 'अर्धक्रोशम्" छे.
मारी पासेनी भावनगरवाळी प्रति सिवाय बाकीनी बधीय प्रतिओमां पण समितिनी आवृत्ति जेवो ज पाठ छे. मात्र एक भावनगत्वाळी प्रतिमा ज 'जोयण'ने बदले 'अद्धकोस' पाठ छे अने ए 'अद्धकोस' पाठ पण भावनगरवाळी प्रतिमा पहेलेथी न हतो परंतु कोईए सुधारीने बनावेलो छ अर्थात् भावनगरवाळी प्रतिमा पहेला 'जोयणं' पाठ ज हतो पण पछी तेने बदले कोईए विवरणर्नु प्रामाण्य ध्यानमा राखी 'अद्धकोसं' करेलो छे अने अहीं में तो ए सुधारेला पाठने ज मान्य राख्यो छे.
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