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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
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तथा, ए एक पक स्तूपनी फरती चारे दिशामां वळी बीजी मणिपीठिकाओ आवेली छे. ते पीठिकाओनी लंबाई पहोळाई आठ
चैत्यवृक्षोनुं योजन अने जाडाई चार योजन छे.प पीठिकाओ अनेक प्रकारना मणिओथी निर्मली अतिशय रमणीय छे, एमनी उपर अने ए स्तूपोनी
| वर्णन बराबर सामे चार जिनप्रतिमाओ विराजेली छे, ए प्रतिमाओ जिननी ऊंचाइए ऊंची अने पर्यकासने बेठेली छे. तेमांनी एक ऋसभनी, बीजी वर्धमाननी, त्रीजी चंद्रानननी अने चोथी वारिषेणनी प्रतिमा छे.
[१२५] वळी, ते स्तूपोनी सामे सोळ योजन लांबी पहोळी अने आठ योजन जाडी एवी सर्वमणिमय बीजी मणिपीठिकाओ निर्मेली | छे. ते दरेक पीठिका उपर एक पक चैत्यवृक्ष आवेलुं छे.
ए बधां चैत्यवृक्षो आठ योजन ऊंचां अने "अडधु योजन ऊंडां छे.घे योजनन थड अडधुं योजन पहोछे छे. थडथी नीकळो ऊंची गपली वचली शाखा छ योजन ऊंची छे. एम ए चैत्यवृक्षोनो सर्वांग लंबाई पहोळाई एकंदर आठ योजन झाझेरी छे.
ए वृक्षोनां मूळ वज्रमय, शाखा रूपेरी, कंदो रिष्टरत्नमय, स्कंधो वैडूर्यना, नानी नानी शाखाओ मणिमय रत्नमय पांदडां वैडू
८१ आगमोदयसमितिवाळा पुस्तकमा (पृ० ८७) "ते णं चेइयरुक्खा अट्ट जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई उब्वेहेणं" आवो पाठ छे. ते पाठ प्रमाणे "ते चैत्यवृक्षो ऊंचाईमां आठ योजन छे अने ऊंडाईमा आठ योजन छे" आवी अर्थ थाय. त्यारे आ मूळ पाठनी टीकामां तद्दन जुदोज अर्थ छे. ("प्रत्येकं चैत्यवृक्षा अष्टौ योजनानि ऊर्ध्वम्-उच्चैत्वेन, अर्धयोजनम् उद्वेधेन-उण्डत्वेन" समिति आवृत्ति पृ०९०) आ विवरणमां "ऊंडाई अडधुं योजन" बताबी छे.
मने लागे छे के प्रस्तुत विवरण- प्रामाण्य जोता समितिवाळी आवृत्तिमा 'अद्वजोयण पाठ होवो जोइए पण संशोधकनी असावधानीथी 'अट्ट जोयणाई थई गयुं छे, आ पाठमां 'अट्ठ' ने बदले 'अद्ध' वांचवाथी काम सरी जशे एम कोइ न धारे, कारण के 'जोयणाई ए बहु-१५ वचननी संगति थइ शके एम नथी. 'अडधा योजन' माटे 'जोयणं' एम एकवचन ज घटमान थई शके.
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