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________________ वनखंडो | तृणोनो ॥७३॥ रायपसेण- प्रत्येक वारणा उपर एक हजार अने अशी ध्वजो लहेरी रह्या छे एम जणावेलं छे. इय सुत्तनो ग ए सूर्याभविमानमां चंदरवाथी सुशोभित पांसठ पांसठ भौमो-भूमिनां स्थानो जणावेलां छे. ए भौमोनी वरावर वच्चे एक पक/सार सिंहासन मांडेलु छ, वाकीना भौमो उपर एक एक भद्रासन मांडेलु छे. विमानमा वारणांओनां ओतरको सोळ प्रकारनां रत्नोथी घडेला छे. वारणांओ उपर धजा अने छत्रोथी शोभतां आठ आठ मंगलो| आवेलां छे: ए रीते विमाननी चारे बाजुनां ते वां बाराओ एवी उत्तमोत्तम शोभावाळां छे. [१०८] ए सूर्याभविमाननी आसपास पांचसे पांचसे योजन मूकीने चार दिशामां चार वनखंडो आवेला छे. पूर्वमा अशोकवन, दक्षिणमा सादडवन, पश्चिममा चंपकवन अने उत्तरमा चूतकवन. ए वनखंडोनी लंबाई साडाबार लाख योजनथी कांदक वधारे अने पहोळाई पांचसो योजन छे. ते दरेकनी फरतो एक एक कोट छे. एम ए चारे वनखंडो लीलाछम जेवा, टाढा हिम जेवा, जोनारनी आंखने ठारे पवा शीतळ छे.. [१०९] ते वनखंडोर्नु मातळ तद्दन सम-सपाट छे, ते उपर अनेक प्रकारना मणिओ अने तृणो शोभी रया छे, तेमनो स्पर्श अने गंध मनगमतो आकर्षक छे. [११०] हे भगवन् ! पूर्व पश्चिम दक्षिण अने उत्तरना वायरा बाय छे त्यारे मंद मंद हलता परस्पर अथडाता पया ते तृणोनो। || अमे माणओनो केवो अवाज थाय छे ? हे गौतम ! एमनो अवाज श्रमहर श्रुतिमधुर अने श्रुतिने अत्यंत तृप्ति आपनारो थाय छे. छत्र, धजा, घंट, पताका अने उत्तम तोरणोथी सुशोभित एक सुंदर रथ होय, जेनी चारे वाजु नानी नानी टोकरीओ जडेली होय, हिमालयमां उगेला तिनिशना लाकडानांथी बनावेलो होय, आरा अने घोसरं बराबर बेसाडेलां होय, पैडां उपरनो लोढानो पाटो। Jain Educatio n al For Private Personel Use Only Whujainelibrary.org . . 1
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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