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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
॥७॥
कटिभाग भूठीमां आवी जाय एवो पातळो, अंबोडो उंचो अने कठण पीवर-भरावदार-छाती, आंखना खूणा राता, वाळ काळा; कोमळ अने शोभनिक छे. अशोक वृक्ष उपर तेनी डाळने डावे हाथे पकडीने ए पूतटीओ उमेली छे. आंखमींचामणी करती ए, जाणे देवोनां मनने हरी न लेती होय, एक बीजा सामु जोती ए, जाणे परस्पर खीजती न होय, एवी जणाय छे. ए बधी बनेली छ
तो पृथ्वीमांथी-माटीमांथी-पण नित्य रहेनारी छे. पमनु मुख चंद्र जेवू, ललाट चंद्रार्ध जेवू अने देखाव चंद्र जेवो सौम्य छे. खरता | तारानी जेम ए बधी झगमग्या करे छे, मेघनी वीजळीनो झबकारो अने प्रखर सूर्यनो चमकाट ए करताय तेओ वधु झबके छे-चमके|५ छे. एवी ए पूतळीओ शंगारे आकारे अने वेशे प्रसाद उपजावे एवी देखावडी अने मनोहर छे.
[१०२] वळी, ए बारणांओनी बन्ने बाजुनी बेठकोमा सर्वरत्नमय सुंदर जाळीवाळां सोळ सोळ रमणीय स्थानो छे,
[१०३] बन्ने पडखेनी ए बेठकोमा सोळ सोळ घंटानी हारो टांगेली जणावेली छे. ए घंटाओ सुवर्णमय, तेमना लोलको वज्रमय, घंटानां बन्ने पडखां विविध मणिमय, घंटानी सांकळो सोनानी अने दोरीओ रूपानी छे. तेमनो रणको मेघना गडगडाट जेवो, सिंहनी | त्राड जेवो, दुंदुभिना नाद जेवो, हंसना स्वर जेवो मंजु छे. पवा-ए कान अने मनने ठारे-सुख आपे-तेवा रणकावडे ते घंटाओनी २० आसपासनो प्रदेश पण गाजतो रहे छे. _ [१०४] वळी, ए वारणांओनी बन्ने बाजुनी बेठकोमा सोळ सोळ वनराइओ जणावेली छे. ए वनराइओमां वृक्षो वेलो फणगा अने| पांदडां मणिमय छे, एमना उपर भमराओ गुंजता रहे छेः एवी ए वनराइओ टाढी हिम जेवी शीतळ अने प्रासादिक छे.
[१०५] वळी, ते बन्ने पडखेनी बेठकोमा वज्रमय सोळ सोळ प्रकंठको-ओटलाओ जणावेला छे. ते दरेकनी लंबाई पहोळाई अढीसो योजन अने जाडाई सवासो योजन छे. ते ते एक एक प्रकंठक उपर एक एक मोटो उंचो महेल आवेलो जणावेलो छे, ते दरेक महेल अढीसो योजन ऊंचो अने सवासो योजन पहोळो छे. जाणे प्रभाना पुंज न होय पवा ए महेलो विविध मणिओ अने रत्नोथी खीचोखीच जडेला छे. उपराउपर छत्रोथी शोभायमान विजय वैजयंती पताकाओ ए महेलो उपर पवनथी फरफरती रहे छ।
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