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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥४०॥ [२१] त्यारपछी, श्रमण भगवान महावीरे जेमने उक्त रीते कहेलु छे पवा ते आभियोगिक देवो हर्षित थया अने यावत् प्रफुल्ल हुदयवाळा थया. तेमणे श्रमण भगवानने वांदी नमी उत्तरपूर्वना खूणा तरफ जई वैक्रियसमुद्घात कयों, ते द्वारा संख्येय योजन लांबो २१भूमंडल दंड काढयो अर्थात् ए समुद्घातद्वारा ते देवोए मोटां-जाडां-पुद्गलोने दूर करी सूक्ष्म पुद्गलो लोधां. पछी फरी पण वैक्रियसमुद्घात स्वच्छ कयु करी ते देवोप संवर्तक वायनी रचना करी अने ते वायद्वारा श्रमण भगवान महावीरनो जे स्थळे ऊतारो हतो ते स्थळनी आसपास चारे बाजु एक योजन सुधीमा जे काइ अपवित्र-सडेलां, दुर्गधी तणखलां, लाकडां, पांदडां के कचरो वगेरे पडयुं हतुं ते वधुं| त्यांथी उठावी दूर करी योजनप्रमाण भूमंडलने स्वच्छ कयुः [२२] वळी, फरीवार वैक्रियसमुद्घात करी ते द्वारा ते देवोए पाणीभरेलां वादळनी रचना करी. जेम कोइ कुशळ छंटारो पाणी६६ मूळमां आ स्थळे वाळीझूडीने साफ करवा बाबत नीचेनुं उदाहरण मूकेलं छे. जेम एक कोइ झाडुवाळानो छोकरो होय-ते जुबान बळवान निरोगी स्थिर बांधानो साफसूफीनी कळामा सिद्धहस्त लांबा अने सीधा | हाथवाळो होय, कूदq टपो जवु वगेरे क्रियामां कुशळ होय, अने वळी मेघावी दक्ष तथा वाग्मी होय, एवो ते छोकरो पोताना हाथमां एक मोटी दंडसंपुच्छनी शलाकाहस्तका के वेणुशलाकामयी अर्थात् एक मोटी सावरणी लइ कोइ राजाना आंगणाने के अंतःपुरने धीरे धीरे साफ करे वा देवळने सभाने परबने आरामने के उद्यानने वाळवा मंडे तेम ए आभियोगिक देवोए ते संवर्तक वायुद्वारा ए भूमिभागने वाळी झूडीने साफ कयों. (मोटा दांडावाळी सावरणी ते दंडसंपुच्छनी. जेना हाथामां सळीओ जडेली छे ते शलाकाहस्तका अने वांसडानी सळीओथी बनेली सावरणी ते वेणुशलाकामयी-आ बधां जुदी जुदी सावरणीनां नामो छे). ६७ आ उपरथी एम लागे छे के पाणी वरसाववा माटे कृत्रिम वादळांनी रचना प्राचीन समयमां थती हशे. आ युगना वैज्ञानिको पण १५ । एवी कोइ चोकस फळवती शोध पाछळ मंड्या छे खरा. अने तेमां तेओ थोडे घणे अंशे फाव्या पण छे. a l For Private Personal Use Only Jain Education wwdainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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