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रायपसेणइय सुनो
सार
अने अंबसालवण चैत्यमां विराजता श्रमण भगवान महावीरने त्रण प्रदक्षिणा करी तेमने वांदो, नमो अने पछी तमारां नाम अने गोत्रो तेमने कही संभळावो, तथा श्रमण भगवान महावीरना ऊतारानी आसपास चारे बाजु योजन- प्रमाण जमीनमां अपवित्र, सडेलां, दुर्गंधी तणखां, लाकडां, पांदडां के कचरो वगेरे जे कांद पड्यं होय तेने त्यांथी उठावी दूर करो अने ए जमीनने तद्दन चोक्खी करो. वळी, तेटली जमीन उपर सुगंधो पाणीनो छंटकाव एवी रीते करो जेथी त्यांनी ऊडती बधी धूळ बेसी जाय, बहु पाणीपाणी न थाय अने वधारे किच्चड पण न थाय. पछी, जेनी रज जरा पण ऊडती नथी एवी जमीन उपर जलज अने स्थलज पवां पांच प्रकारां सुगंधी पुष्पोनो वरसाद पवी रीते वरसावो के त्यां वधां पुप्पो चत्तां ज पडे, तेमनां डिंटियां नीचे रहे अने ए पुष्पो बधे जमीनथी उंचे एक एक जानु-हाथ सुधी उपराउपर खीचोखीच रहे. आ उपरांत ते जमीनने काळो अगर, उत्तम किनरु भने तुरु
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६४ भक्तोनुं अतिशय भक्तिथी आवेगवाळु हृदय एकवार तो कई कंइ कल्पनाओ करी बेसे छे अने पछी स्वस्थ थतां ते करेली कल्पनाओमां पोतानी ज बुद्धि ज्यारे विसंवाद ऊभो करे छे त्यारे तेनुं निराकरण करवा वळी बीजी केवी विचित्र कल्पनाओ करवी पडे छे, तेनो आ एक साररूप नमूनो नीचे प्रवचनसारोद्वार पृ. १०७ माथी अहीं ऊतारेलो छेः
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"भगवाननी समवसरणभूमिमां देवो पुष्पोनी वृष्टि करे छे. ए तो खरं, पण त्यारे ए पुष्पवाळी भूमिमां जीवदयाप्रधान जीवन गाळनारा साधुओ बेसे शी रीते ? पुष्पो उपर साधुओ बेसे तो ते विचारां मूगां पुष्पो कचराय - दुःख पामे अने कोई पण प्राणीने दुःख न देवाना बाळा साधुओ ए गरीब पुष्पोने दूभवे खरा ? आना जवाबमां केटलाक कहे छे के समवसरण भूमिमां वरसेलां पुष्पो सजीव ज होय छे एम नथी, निर्जीव पण होय छे एटले तेमना उपर बेसवाथी तेमने दुःख थवानो संभव नथी. केटलाकोए आपेलो आ उत्तर खरो छे एम प्रवचनसारोद्धारना टीकाकार नथीं मानता. तेओ तो कहे छे के त्यां वरसेला बधांय पुष्पो निर्जीव नथी होतां, सजीव पण होय छे, त्यारे १५ हवे त्यां साधुओने बेसवानुं केम थाय ? आ माटे वळी कोइ बीजा बीजो ज जवाब शोधी काढे छे के ज्यां ज्यां साधुओ बेसवाना होय छे
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