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रायपसेणइय सुत्तनो सार
[९] स्वभावे श्रमण भगवान महावीर अनानव-आस्रव बिनाना-सामाजिक वा आध्यात्मिक दूषण जेथी उत्पन्न थाय तेवी प्रवृत्ति विनाना, ममतारहित, अकिंचन -अच्छिक गरीबीने वरेला-अपरिग्रही, संसारना स्रोते-प्रवाहे-नहि वहेनारा, आसक्ति विषयानुराग
९ भगवान द्वेष अने अज्ञानथी पर रहेला, निग्रंथ प्रवचनना उपदेशक, श्रमण शास्ताओना नायक-तेमना व्यवस्थापक, श्रमणोना अधिपति,श्रमण
महावीरना स्वभावर्नु
| वर्णन ४७ जेमनी पासे किंचन-काइ-नथी ते अकिंचन. आवा अकिंचनो बे प्रकारना होय छे. एक तो औच्छिक अकिंचन अने बीजा ओघ अकिंचन. ओघ अकिंचनो पोतानी वृत्तिने शोध्या विना मात्र आवेग के देखादेखीथी अकिंचनपणुं माणे छे, एथी तेओ अकिंचनो देखावा ५ छतां पोतानी अने परनी समाधिमां विघ्नरूप बने छे, तेमनामां तृष्णा काम लोभ ईर्ष्या अहंकार वगेरे वृत्तिओ पडेली होय छे, तेमांनी एक शा वृत्तिने पण ते ओघ अकिंचनो विवेक न होवाने कारणे दाबी शकता नथी, उलटुं ते वृत्तिओना तेओ दास बनेला होय छे. एथी ओघ अकिंचनोनो मोटो भाग समाज, राष्ट्र, विश्व के व्यक्तिनी शांतिने हानि पहोंचाडनारो थाय छे. जेओ पोतानी वृत्तिने तपासी तावीने अने पोतानां बळ सामर्थ्य अने मर्यादा वगेरेन बराबर समजीने इच्छापूर्वक अकिंचनपणुं स्वीकारे छे, तेओ अच्छिक अकिंचनो छे. आवा ज अकिचनो पोताने विकास साधी शके छे अने व्यक्ति समाज राष्ट्र के विश्वनी शांतिमा पोतानो फाळो नोधावी शके छे. भगवान महावीर आ | १०॥ जातना अकिंचन हता, पण ओघ अकिंचन न हता. संसारनो प्रत्येक प्राणी पोतानी अज्ञानताने लीधे दुःखना पंकमा फसाएलो छे. संसारमा अज्ञान अने दुःखनी मात्रा एटली बधी वधारे छे के तेनो एटले समस्त संसारना समग्र अज्ञान अने समग्र दुःखनो समूळ नाश कोइथी कोइ प्रकारे थइ शक्यो नथी, थइ शकतो नयी अने हवे पछी थइ शकशे के केम ए प्रश्न छ आम छाय जे महान आत्माओगें हृदय ए दुःख परंपराने जोतांज ककळी ऊठे छे, तेओ ते दुःखना साधनरूपे कदी पण बनता नथी अने एवा साधनभूत न थवा माटेज तेओ अच्छिक गरीबीने स्वीकारे छे. अच्छिक गरीबीने वरेला ज महानुभावो खरा अकिंचन छे.
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