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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
पवां घाटां हतां के तेमां क्याय छिद्र ज न जणाय, ए वृक्षोना पाकां घरडां पांदडां तो खरी पडेलां अने ताजां नवां कूणां पांद ने लीधे ए लीला लीला काच जेवा ओपता, वृक्षोनी टोचे आवेला नवा कोमळ किसलयो शिखरनी जेम हल्या करता, छप तुमोमां | ए बधां कोळेलां-कळीओवाळां, फुलेला-फुलोवाळां, फळेलां-फळोवाळां, पल्लववाळां, गुच्छावाळा अने फळोना भारथी नमेलां रहेतां.
उंचा उंचां तरुओ उपर दम्पतीरूप सूडा, मोर, मेना, कोयल, कोरक, कोभव, भिंगार, कोंडलक, जीवजीवक, नन्दीमुख, कपिल, कपिलाक्ष, कारंड, चकवा, कलहंस अने सारस वगेरे पक्षीओ आमतेम उडतां, कूजतां-मधुर कलकल कर्या करतां, भमरा-भमरीओनुं | झुण्ड (पमनी उपर) गुंजारवा मस्त रहेतुं.
| ॥९॥ रोग विनाना, कांटा बगरना अने मधुर रसभर ए तरुओनी" आसपास रिंगणी वगेरेना नाना छोडो तथा नवमालिका वगेरेना। मण्डपो शोभता; प वर्धा विशेष उन्नत तरुवरो पर ध्वजो फरक्या करता.
अशोक वृक्षनी चारे बाजु शोभायमान प वृक्षकुंजमा क्यांय जाळियांपाळी चोरस वावडीओ, क्याय गोळ वावो, क्यांय कमळोवाळां| नानां नानां पोखरो अने क्याय पाणीथी भरेली लांबी लांबी सीधी नीको वगेरे अनेक जळाशयो ए वृक्षघटानी शोभामा वळी विशेष | १० वधारो करतां, जेटली जातनी सुगन्धो होय छे तेटली बधी ५ घटामांथी महेकती तेथी तेने लोको 'गन्धधाणि" कहेता.
पनवेल, नागवेल, अशोकवेल, चम्पकवेल; आंबावेल," वनवेल, वासंतीवेल, माधवीवेल, कुंदवेल अने श्यामवेल वगेरे बीजी अनेक वेलडीओथी ए वृक्षराजि वींटळापली रहेती, वनराइना प्रत्येक वृक्षना मूळमा के आसपास उगेलां डाभ वगेरे घातकतृणो नींदी नाखेलां
१९ वृक्षोने लगतुं आ बधु वर्णन वाचता ते समयना वृक्ष-प्रेमीओनो वृक्षो प्रति पोताना संतान जेवो प्रेम सहेजे जाणीशकाय एम छे. जे लोकोमा वृक्षनी साचवणी, वृक्षोने उगाडवानी पद्धतिर्नु ज्ञान अने वृक्षो प्रति काळजी न होय तेओ आवां वृक्षो न उगाडी शके. आज-184/ काल आवा वृक्षप्रेमीओना अभावने लीधे ज देश सूको थवा लाग्यो छे ए खोटी बात नथी.
२० गंधप्राणि' शब्द गंधनी तृप्तिनो सूचक छे. अशोकवृक्षनी आसपासनो वृक्षकुंज एटली बधो महेकतो एटले के जे जे जातना सुगंधो
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