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प्रवेशक
रायपसेणइय सुत्
॥२८॥
सूत्रकृतांग सूत्रना पहेला अध्ययनना त्रीजा उद्देशानी श्रीजी गाथा तेमां आ रीते छपायेली छः
उदगस्स पभावेणं सुकं सिग्धं तर्मिति उ।। आ गाथा उपरनी टीका जोतां तेनुं शुद्धरूप आरीते होइ शके:
उद्गस्स पभावेणं सुक्कंसि घंतर्मिति उ । रायपसेणइम सूत्रमा समितिनी आवृत्तिमा [पृ० ८८ प्रथम बाजु] मूळमां 'जोयणं उब्वेहेणं जोयणं विक्खंभेणं' एयो पाठ छे अने | तेना विवरणमा 'अर्धक्रोशम्-अर्धगव्यूतमुधेिन अर्धक्रोश विष्कम्भतः' आवो मूळना भावथी जुदा भाववाळो पाठ छे. आ पाठमां
मूळमां 'योजन' नुं माप बताव्युं छे त्यारे विवरणकार 'अर्धकोश'नुं माप बतावे छे. आ कांई साधारण विसंवाद न गणाय! । रायपसेणइअ सूत्रमा समितिनी आवृत्तिमां [पृ० ८८] मूळमां 'दस जोयणाई उव्वेहेणं' पाठ छे अने तेना विवरणमा 'द्वासप्ततियोजनानि' पाठ छे. 'दस योजन'विवरण करतां आगमनो अभ्यासी विवरणकार 'बहोतेर योजन' केम लखी शके ? ___ आ रीते आगमना छपायेला प्रत्येक पुस्तकमां मूळ अने विवरणमां घणाय विसंवादो रही गया छ, जेना निराकरण माटे संपादके अक्षर पण पाड्यो नथी तेम तेनी नोंध पण लीधी नथी.
ज्यारे के अत्यार आगमच छपायेला आगमोमां आ प्रमाणे मूळ तेमज विवरणनो विसंवाद छे, मूळना शुद्ध पाठो अनिश्चित छे अने विवरणकारे अनेक पाठमेदो नोंघेला छे त्यारे अमुक प्रकारना पाठनो निर्णय कर्या विना ते आगमोने शिलारूढ करवा तेमां पारमार्थिक दृष्टिप आगमनी पूजा छे खरी?
संपादनशैली आ मुद्रणमां विवरणमा आघेली मूळनी प्रतीको मूळमां ज आवो जती होवाथी ते विवरणमां मूकवामां आवी नथी. परन्तु ज्यां आवश्यक जेवू जणायुं त्यां ते प्रतीको राखवामां आवी छे. बीजु मूळपाटना जे जे शब्दो उपर विवरण छे त्यां मूळना शब्दो उपर
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