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रायसेनइय सुतं
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राजाए कहांः चित्त ! आजे ज करीए, चाल तैयार था अने ए घोडाओने धरमां नाखी रथ जोडी लाव.
रथम बेसी अश्वपरीक्षा माटे बहार नीकळ्या. चित्त सारथिप रथने पूरपाट हांकी मूक्यो, बहु दूर जई पहोंच्या. राजा तो थाकी गयो अने गरमी तथा धूळथी गभरायो. एणे रथने पाछो वळाव्यो.
चतुर अने समय चित्ते विश्रांति माटे ते ज बगीचो पसंद कर्यो ज्यां तेना गुरु केशी मुनि ऊतर्या हता.
बगीचामां घोडा छोड्या, तेमने चारो नाख्यो अने बन्ने जण थाक खावा बेठा. एवामां राजा पसीने काने केशी मुनिनो घेरो अवाज अथडायो.
राजा बडबड्योः आ मुंडको अहीं आटले हेटे थाक खावा आव्या द्वीप तोपण सुखे निरांते बेसवा देतो नथी, आ ते आवडो मोटो घोंघाट शेनो ?
चित्ते घणी ज नम्रताथी पोताना प्रिय राजाने मुनिनो परिचय कराव्यो अने तेमनी विद्वत्तानी थोडी प्रशंसा पण करी. सरळ स्वभावी राजा मुनिने मळवा उत्सुक थयो भने बन्ने जणा-राजा अने अमात्य मुनिश्री पासे पहोंच्या.
राजा आत्मा जन्मांतर अने पुण्य पाप संबंधेनी पोतानी जिज्ञासा मुनि समक्ष रजु करी अने कहांः
हे श्रमणायुष्मन् ! में आत्मा वगेरे तत्वोने शोधवा प्राप्त करवा घणा घणा प्रयोगो करी जोया छतां अत्यारसुधीमां हुं प प्रयोगोमां अफळ नीड्यो छु अने अत्यारसुधीना मारा जातजातना ए प्रयोगो उपरथी हुं एवा निर्णय उपर आव्यो छु के आत्मा नथी, जन्मांतर नथी अने पुण्य-पाप पण नथी. आ संबंधे आप कोई नवो प्रयोग बतावशो वा आपना विचारो प्रकट करशो तो कृपा थशे.
श्रीकेशी मुनि राजानी जिज्ञासा अने आत्मानी शोध माटेनी तालावेली बराबर समजी गया.
राजा रजु करेली साफ साफ वातो द्वारा मुनिराजे तेना मानसनी स्थिति जाणी. 'आ राजा गतानुगतिक नथी' 'हा जी हा भणे वो नथी' पण शुद्ध परीक्षाद्वारा विशुद्ध प्रयोगद्वारा वस्तुतत्त्वने शोधनारो - समजनारो साचो ग्राहक छे, खरो जिज्ञासु छे, ए बाबतनी
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।।१५।।
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