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प्रवेशक
रायपसेणइय सुतं
॥१४॥
क्रूर राजानुं शासन प्रवर्त्ततुं होय त्यां आवq शुं श्रेयरूप छे?
पछी तो ते चित्ते केशी मुनिने कर्तुं के स्वामी ! आप देवानुप्रियने पएसी राजानुं शुं काम छे? राजधानीमां बीजा घणा य सार्थवाहो इभ्यो वसे छे, तेओ आपनो आदर करशे अने खानपान वगेरेनी विपुल सामग्रीद्वारा आपनो सेवा करशे.
चित्तनुं ए जातनुं सुव्यवस्थित आग्रहभर्यु आमंत्रण जाणी केशी मुनिए कहां के, एम छे तो वळी प्रसंगे वात-फरतां फरतां त्यां आवी जशु. __ पछी तो चित्त राजधानी सेयवियामां आव्यो, पोताना गुरुसंबंधे तेने भारे खटको हतो तेथी आवतांज तेणे बगीचाना माळीओने बोलाव्या अने तेमने भारपूर्वक भलामण करी के, आपणी आ राजधानीमां श्रीकेशी नामना एक मोटा ज्ञानी मुनिराज आववाना छे, तेओ आपणा बगीचामां ऊतरशे, तो तेओ ज्यारे पधारे त्यारे तमो बधा तेमनो बहु विनयपूर्वक आदर करजो, तेमने वांदजो-नमजो अने खानपाननी सामग्रीद्वारा तेमनो सत्कार करजो.
वखत जतां केशो मुनि पण गामेगाम फरता फरता राजा पपसीनी राजधानीमां जाधी पहोंच्या. चित्ते तेमनो खूब आदर कयों अने कह्य के हुं आपनी पासे राजा पपसीने कोईनेकोई व्हाने लावीश तो खरो ज, पछी आप तेने धर्म अधर्मनी समजण पाडशो, राजाने समजावर्ता जरा पण ग्लान न थशो-कंटाळशो नहि, तेम ज तेने जे समजावq होय ते नीडर थईने समजावजो, एमां लेश पण अचकाशो नहि.
चित्तनी तो पहेलेथीज इच्छा हती के श्रोकेशी मुनि अने राजा पएसीनो समागम थाय तो राजानी वृत्तिमां कोमळता आवे अने तेम थाय तो केकय देशनी प्रजा पण सुखी थाय.
बराबर लाग जोईने एक बार चित्ते काः महाराज! आपणे त्यां कंबोज देशना पेला जे चार घोडाओ आवेला छे तेमनी तो हजु परीक्षा पण न करी, ते हवे क्यारे करवाना छो?
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