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पुंडरीक-8 पछी तेनुं मनन करवाथी कर्ताए काव्यमां गुंथेली चमत्कृतिनो प्रकाश थाय छे. वांचनारने एकंदर आनंद रस उपजावनारु
अने एक वखत वांच्या पछी फरीथी तेनुं तेज पुस्तक वाचवानी प्रेरणा करनारुं आ पुस्तक छे.
आ संस्कृत काव्य महाकाव्य छे. कर्ताए जो के तेनी अंदर अनेक चमत्कारो अने भावो प्रगटपणे तेमज गूढपणे 18 राखेला छे छतां तेने अत्यंत कठण थवा दीधं नथी, संस्कृत भाषा अत्यंत कोमळ छटादार अने आनंददायक छे. वांचनारने संस्कृतनो तेमज जैनशास्त्रनो सारो बोध आपनारुं आ काव्य छे.
भाज मुधी शāजयना दीपकतुल्य पुंडरीकस्वामी जेवा महा पुरुषतुं चरित्र संपूर्णपणे बहार न पडवानुं कारण एज देखाय छे के कमलमभमुरिए रचेला भा काव्यनी नकलो जोइए तेटला प्रमाणमा लखायेली नहि होय, कारणके आ चरिप्रनी प्रत अमने फक्त एकज मळी शकी अने ते पण पडी मात्रानी अने अत्यंत जुनी होवाथी जीर्ण मायःहती. आग्रंथ अत्यंत उपयोगी तेमज प्रसिद्ध करवानी आवश्यकतावाळो होवाथी अमे एक सारा पंडित तरीके गणांता मी. बेचरदास पासे सारी रीते संशोधन करावी बहार पाड्यो छे. वाचनारने सरळ थवा वास्ते पर्याय शब्दो अने नोट पूरता प्रमाणमा आपेली छे.
आ ग्रंथना आठ संग अने छेवटे एक सर्ग जेटली समाप्ति करेली छे. तेमां विस्तारथी पुंडरीकस्वामीन चरित्र लखवा उपरांत संक्षेपथी प्रथम चक्रवर्ती भरतमहाराजनुं अने प्रथम जिनपति ऋषभदेवनु वर्णन आपेलुं छे. सिद्धादि-शत्रंजय वर्णन पण सारा प्रमाणमां आपी घणी प्रकाश कर्यों छविषयानुक्रमणिका
सर्ग १ को-आ सर्गमां काए मांगलिक करीने युगादिनाथने केवळज्ञानना प्रसंगमा अयोध्यानगरीथी शरुआत करीने ऋषभदेषराजा, तेमनी पत्निओ, तेमना पुत्रोना पूर्वभवनी साधे जन्म अने नामो, पुंडरीफस्वामीनो जन्म, ऋषभदेवनी
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