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________________ सम्यक स०टी० CAC- ॥२६॥ तेसिं एगो कहा एवं ॥५५॥ पियसङ्गमाओ अवरो, सग्गो नो अस्थि इत्थ भुवर्णमि । अवरो भणेइ जं जं. सहजणयं स स हवइ सग्गो ॥५६॥ एवं सग्गसरूवं, तकहियं पुप्फचूलनिवदइया। नो मन्नेइ जओ सा, तहिदाठिई सयं सविणे ॥ ५७ ॥ अह हकारिय रण्णा, अण्णियउत्तो नमित्तु परिपुट्ठो । तियसालयस्सरूवं, जहट्ठियं साहए सवं In५८॥ तं सुणिय पुप्फचूला, विणयावणया भणेइ गुरुपुरओ। भयवं! ममं व सुविणे, किंतुम्हिवि पिक्खिया सग्गा? ॥ ५९॥ वागरइ गरू भद्दे,! जिणवयणपईवभासियमणाणं । सग्गसरूवं अन्नंपि, सन्चमम्हाण पुण पयर्ड ॥६॥ निवदइयावि पमाणं, जिणवयणं चिय मणमि जाणित्ता। पुच्छेइ गुरुं सग्गो, पाविजइ केण कम्मेणं? ॥६॥ तो वागरइ गुरू विहु, भद्दे ! जिणदेसियाइ दिक्खाए । सवसुहाणं ठाणं, लब्भइ सग्गोऽपवग्गोवि ॥६२॥ इय सुणिय भग्गदुग्गइमग्गा रङ्गतरङ्गसंवेगा । श्रीपुप्फचूलनरवरपाणपिया विन्नवेइ गुरुं ॥६३ ॥ भयवं! दइयं पुच्छिय, पवजं तुम्ह पायमूलंमि। गहिउं नरजम्मफलं, सुहफलफ(क)लियं करिस्सामि ॥६४॥इय भणिरी निवभज्जा, नमिऊण गुरुं विसज्जए है हरिसा। तत्तो नियदइयं पइ, जंपइ महुराइ वाणीए ॥६५ ॥ तुम्ह पसाया सामिय ! भोगुवभोगा मए सया भुत्ता। इहि कुणह पसायं, पक्वजं जेण गिण्हेमि ॥६६॥ तमयण्डवजपायं पिव सुणिय वयं निवो पयंपेइ । सुयणु!! मह पिम्मपउमं, मा उम्मूलेसु करिणिव ॥ ६७ ॥ सत्तङ्गसङ्गयं पिहु, रजं अन्तेउरं तहा नयरं । मह तुह विरहे ससिमुहि !, सुन्नरणं व पडिहाई॥६८॥ अह चिट्ठसि न कहंपिहु, तो तं अङ्गीकयन्वया सन्ती। गिण्हसु महगिह-1 AARYAAR ॥२६॥ Jamn Educati onal For Private &Personal use Only T rainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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