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________________ |भणेइ भयवं! ममं व तुम्हेहि सुविणमझंमि । किं नरयाण सरूवं, सयलंपि पलोइयं एयं? ॥ ४२ ॥ सूरीवि भणइ भहे !, सुविणेण विणावि जिणवरागमओ। जाणिजइ अम्हेहिं, लोयसरूवं असेसंपि ॥४३॥ तो निवजाया पुच्छइ, भयवं ! विहिएण केण कम्मेणं ? । जीवा पावन्ति इमाणि, नरयदुक्खाणि तिक्खाणि ॥४४॥ अण्णियपुत्तो साहइ, कुणिमाहारे सया पसत्ताणं । महरम्भमहपरिग्गह-पसत्तचित्ताण सत्ताणं ॥४५॥ पश्चिंदियघाईणं, गुरुपडिणीयाण रुद्दझाणीणं । नरए हवेइ पडणं, उल्लालियदण्डनाएण ॥४६॥जुयलं । इय कहिऊणं अण्णिय-पुत्तायरिया गया नियं ठाणं । जणणीदेवोवि तओ, तीसे दंसेइ सग्गाइं ॥४७॥ तत्थ य तियसा मणिमयविमाणमालानिवाससुहसुहिया। अमरतरुनियरपूरियसमीहियत्था अइपसत्था ॥४८॥ कुण्डलतिरीडहारप्पमुहाहरणेहि भूसियसरीरा । नियकंतकन्तिपूरेहिं, पूरियासेसदिसिविदिसा ॥ ४९ ॥ अरयंबरवत्थधरा, अणमिसनलिणोवमाणनयणजुया । अमिलाणपुप्फमाला, घोलिरगलकन्दला सययं ॥ ५० ॥ देवंगणागणेहिं, सह विसयसुहं सया समाणन्ता। बहुविहजलाइकीलापसत्तचित्ता दुहच्चत्ता ॥५१॥ गामसरताणमुच्छणमुच्छियवरगीयसवणनिहुअमणा । ताललयमाणरम्मं, नट्टारम्भं पलोयन्ता ॥५२॥ सयलजगलोललोलाकोडिहिं पिहु न वण्णिउं सकं । ईसरियमणुहवंता, चिट्ठन्ति पगिट्टतुट्ठमणा ॥५३॥ पड़िः कुलकम् ॥ इय पिक्खिउण सुमिणे देवसरूवं सकोउगा देवी । पडिबुज्झिऊण पइणो, जहहि कहइ वुत्तंतं ॥५४॥ गोसे तोसेण निवो, दंसणिणो आहवित्त पुच्छेइ। किं सग्गस्स सरूवं? **A*SOLOIS Hamn Education For Privale & Personal Use Only Mainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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