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________________ भिक्खं, जेणणुजाणामि दिक्खटुं ॥ ६९ ॥ रण्णो तहत्ति पडिवजिऊण तं वयणममयपाणं व । दीणाइयाण दाणं, दाऊणं कप्पवल्लिव ॥ ७० ॥ सवत्थाभयदाणं, उग्धोसिय चेइएसु तह पूयं । काऊण दइयकारियनिक्खमणमहूसवुकरिसा ॥ ७१॥ गन्तूण अण्णियासुयगणहरपासंमि पुप्फचूला सा । पडिवजइ पवजं, बीयंपिव मुक्खरुक्खस्स ॥ ७२ ॥ (तिहिँ कुलयं) गहणासेवणसिक्खं, सम्मं सा सिक्खिउं महादक्खा । सञ्जाया गरुयाणं, सङ्गो हि गुणावहो होइ ॥ ७३ ॥ अह नाणेणं नाउं, बारससंवच्छराइँ दुभिक्खं । अण्णियउत्तायरिओ, गच्छं पइ जंपए एवं ॥ ७४ ॥ वच्छा! गच्छह तुम्भे, दुभिक्खाओ सुभिक्खदेसेसु । जवाबलपरिखीणा, चिट्ठिस्सामो इहेवऽम्हे ॥७५॥ पुहवितललुलियसीसा, सीसावि भणन्ति नेरिसं जुत्तं । तुम्ह पयपउममूलं, मुत्तुं अम्हाण पुण गमणं ॥ ७६ ॥ तो नमिय पुप्फचूला, विनवइ गुरुं मुणिन्द ! तुम्हाणं । पुण्णोदएणं लद्धं, सुस्सूसमहं करिस्सामि ॥ ७७ ॥ उस्सग्गववायविऊ, अणुचियमवि तीइ साहुणीइ गिरं । पडिवजिऊण गच्छं, सुभिक्खदेसंमि पट्ठवइ ॥ ७८ ॥ अह पुप्फचूल अन्तेउराओ गहिऊण सुद्धमाहारं । वियरेइ पुप्फचूला, गुरूण परमाइ भत्तीए ॥ ७९ ॥ एवं सया गुरूणं, एगग्गमपण सा परमभत्तिं । कुणमाणा सुहझाणा, पावइ वरकेवलं नाणं ॥ ८०॥ सा जायकेवलावि हु, वेयावचं विसे सओ गुरुणो । आगमभणियं अत्थं, सञ्चवयन्ती विणिम्मेइ ॥ ८१ ॥ जो जस्स य जारिसयं, पुश्विं भत्तिं कुणन्तओ होइ । सो तस्स तारिसं चिय, कुणेइ जा नजइ न नाणी ॥ ८२॥ नाणेण सा गुरूणं, सवाइँ मणिच्छियाई पूरती। Jain Education For Privale & Personal Use Only Mainelibrary.org anal सा
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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