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________________ सम्य० ॥२१८॥ जुयलं || तस्सवणमोहियमणो परियणसहिओ विमुक्कपलको । चित्तलिहिउच्च जाओ राया रुद्धऽन्नवावारो ॥ १०७ ॥ खगमित्तेणं । तत्तो तन्नाडयसवणविहडणपयंडो । पाभाइयतूरखो उच्छलिओ रायपासाए ॥ १०८ ॥ उज्झिअसंगीयरसा पेसइ कन्नाउ जणयगेहंमि । सययं तु चंदलेहा धवलहरे जाइ नियमि ॥ १०९ ॥ अइसयचुजं चित्ते समुहंतो दुहेण दुललिओ । रजस्सवि कजाई न करइ तग्गीयहयहियओ ॥ ११० ॥ पुणरवि एगदिणस्स य अंतरियं ताहिँ | लोयमणहरणं । पिक्खणयं पारडं अडवतालेहिं रेहिलं ॥ १११ ॥ गामत्तयपरिकलियं मुच्छाजणयाहि मुच्छणाहि जुयं । महुरसरपसरसारं राया गीयं सुणइ ताणं ॥ ११२ ॥ चिंतइ चित्ते उम्मत्तयावि मत्तत्तणं चइय करिणो । गीएणं पसुणोऽवि जंति वसं का नराण कहा ? ॥ ११३ ॥ तं अमियरससरिच्छं संगीयरसं भिसं पियंतस्स । पाभाइयतूरवो गरपसरसहोयरो सुणिओ ॥ ११४ ॥ पिच्छणळणे नियत्ते पत्तो अत्थाणमंडवं राया । नेमित्तियपमुहजणे पुच्छइ संगीतंतं ॥ ११५ ॥ तस्स रहस्सं नवि कोऽवि जाणए दूमिओ तओ राया । अइवाहह कट्ठेणं दिवसं रयणि समीहंतो ॥ ११६ ॥ अह रण्णो मगभावं सम्मं नाऊन चंदलेहावि । रण्णो पासे पेसइ संकेइय जोगिणिमेगं ॥ ११७ ॥ साय केरिसा ? -मणिकणयदंड मंडियपाणी मणिपाउयाहिं आरूढा । नित्तमयचारुतलवट्टपट्टसंछन्न अद्धंगा ॥ ११८ ॥ | मुत्ताहलजवमाला पहिरिय जहरपडेण सोहिला । सोवन्नजोगवट्टी मणिकुंडल मंडियकवोला ॥ ११९ ॥ मुत्तिमई इव सिद्धी रयणासणपाणिचिल्लियाक लिया । पडिहारदिन्नमग्गा रायस्यासंमि सा पत्ता ॥ १२० ॥ ( कुलयं) तं सिद्ध I Jain Education International For Private & Personal Use Only स० टी० ॥२१८॥ www.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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