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________________ सन सम्यकपायपुद्गलास्तीवत्वेनानन्तानुवन्धिक पायकल्पविपाकवन्त इति गाथापूर्वार्द्धार्थः । भावार्थस्तु मेतार्यचरित्रेणा-MIसटी सूत्र्यते तथाहि॥१७०॥ I सायम्मि पुरम्मि अलयासिरिविजयकरणचउरम्भि । अइविमलकलाचन्दो चन्दवडंसो निवो हुत्था ॥१॥ तस्स य दो भजाओ रइपीई इव सिरीइ तणयस्स । पढमा सुदंसणक्खा बीया पियदंसणा नाम ॥२॥ ताणं पढमा नंदणजुयं पसूया मणोहरं ताणं । एगो सागरचन्दो बीओ मुणिचंदनामो य ॥ ३॥ पिअदंसणावि पिअदंसणिजरूवं जणेइ सुअजुअलं । सिरिवालचंदगुणचंदनामयं चंदरविसरिसं ॥४॥ सुअजुअलजुयलएणं जंबुद्दीवम्मि रेहए राया। सुरवरगिरिव दिणयरससहरजुयलेण अणवरयं ॥ ५॥ तत्तो जुवरायपयं सागरचंदस्स अप्पए राया। मुणिचंदस्स य वियरइ उजेणिपुरीइ सामित्तं ॥६॥ अह हेमंते पत्ते संझाए परियणं विसजेउं । चंदवडंसो राया नियवास हरम्मि संपत्तो ॥ ७॥ पासइ दीवयमेगं उजोयंतं समंतओ भवणं । जावेसो पजलिरो ताव न पारेमि पडिममहंटू M॥८॥ इय चिंतिय धम्मरुई राया पावस्स निग्गहनिमित्तं । समभावभावियप्पा काउस्सग्गे ठिओ धीरो ॥९॥ पढमे पहरम्मि गए उट्टेउं सिजवालिया तिलं । दीवे खिवेइ मा मह सामि तिमिरं अइक्कमउ ॥१०॥ जह ज़ह दीवस्स सिहा उज्जोयइ तस्स वाहिरंगाणि । तह तह अंतरतिमिरं नासइ समभावजुहाए ॥ ११ ॥ एवं ॥१७०1 तिसु सेसेसुं पहरेसुं सिजवालिया तिलं । दीवम्मि(उ) पक्खिवई अमुणंती नियपहुपइन्नं ॥ १२ ॥ नेहेण विणा नूणं amane Jan Education Interational For Private &Personal use Only www.janobrary on
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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