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________________ Jain Education I दीविज्जइ एसऽहं तु तेणेव । इय सो बज्झो दीवो नट्टो तज्ज्ञाणदीवाओ ॥ १३ ॥ राया पूरियसंधो काउस्सग्गं स पारए जाव । ताव य काउस्सग्गाभिनुहो जाओ य तस्सप्पा ॥ १४ ॥ लोहियभरिओ सुकुमारविग्गहो नय पया पयं दाउँ । सक्को राया तत्थेव छिन्नरुक्खुव सो पडिओ ॥ १५ ॥ पंचपरमिट्टिमंतं झायंतो सत्तुमित्तसमचित्तो । सो पंचजणाविइ पंचतं झत्ति संपत्तो ॥ १६ ॥ गुरुवत्थू जाइ अहो लहुओ उवरिम्मि होइ नियंतं । इय महिवीढे मुत्तुं तनुं जिओ तस्स उवरि गओ ॥ १७ ॥ काऊण तस्स किरियं सायरचंदोऽवि मायरं भणइ । रंज्जं तुह ठविय सुए पचजं साहयामि अहं ॥ १८ ॥ सा भणइ वच्छ ! पुत्ते तुमम्मि मह नत्थि कोऽविहु विसेसो । किं वामदक्खिणाणं अंतरं होइ नयणाणं ? ॥ १९ ॥ तो तं कुणेसु रजं सह पुत्तो तुम्ह सेवओ होही । जिम्मि भाउयम्मी भत्ती काउं जिओ जुग्गा ॥ २० ॥ अह मतिमुहजणेणं सायरचंदो मुहे मुद्दत्तम्मि । रजपए अहिसित्तो नाएण पयाओ पालेइ ॥ २१ ॥ तं पिच्छिऊण निवसिरि-वरियं पियदंसणा निए हियए । दूमेइ पोमिणी इव रयणीयरमंडलं सयलं ॥२२॥ झायर मणे न गहियं दिजंतंपि सुयस्स मह रजं । संपइ तेण विमुक्कं तं पिक्खती दुहे पडिया ॥ २३ ॥ ता एवं नरनाहं मारिय ठावेमि नियसुयं रज्जे । एयम्मिय जीवन्ते न लहइ मह नंदणो लच्छि ॥ २४ ॥ अन्नदिणे उज्जाणे वेमा उयभाय जुयजुयम्मि निवे । चेडीमोयगमेगं करे करिता घरा चलिया ।। २५ ।। पियदसणाइ भणिया कत्थ तुमं जासि ? साविहु भणेइ । उववासपारणत्थं नएमि रण्णो कए एयं । २६ ।। लद्वावसरा पावा विसलित्तकरा कराउ For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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