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चित्तो समसत्नुमित्तओ जाव चिट्ठामि ॥९८॥जुयलं ता दित्तदित्तिजुत्तं, रयणाहरणेहिं मंडियसरीरं।सुररायसमं पुरिसं, पुरओ पिक्खामि एगमहं ॥ ९९ ॥ तत्तो उठ्ठिय जोडिअ हत्थे सो सायरं मए पुट्ठो । जह दसणेण तुट्ठो, तह निय-13 चरियस्स कहणेऽवि ॥ १०॥तो सो जंपइ वेयड्डपबए विजुपहभिहो खयरो । नंदीसरम्मि दीवे, चलिओ देवाण नमणत्थं ।। १०१॥ इत्थ तुमं पासित्ता, विम्हियहियओऽवलोयणिं देविं। पुच्छिय तुह चरियमहं, नाऊण य संपइ समेओ ॥ १०२ ॥ ताऽहं तुह सत्तेणं, जिणसेवाए तवेण तह तुट्टो । दाहामि गयणगामिणिविजासहियं नियं पुत्तिं ॥ १०३॥ विजाबलेण तेणवि, समाणिया झत्तितत्थ नियधूया। तह महुराहारं पिहु भोयावइ मं स खयरवरो ॥१०४॥ तो परिणाविय कन्नं, विजं आगासगामिणिं देइ । गुरुयाण पसन्नाणं, किमित्थ भुवणे अदेयंपि?॥१०५॥ पोयवणियाण वयणेण मा ताओ अद्धिइं मणे कुणउ । इय वेगेणं चडिउं, विमाणमेयं इहं पत्तो ॥ १०६ ॥ तस्स य रिद्धिं दटुं, पच्छुत्तावं कुणंति ते वणिणो । किं तइया तं सेलं, अम्हे न गया अकयपुण्णा ? ॥१०७॥ सिट्टितणयस्स जाया, सत्तसिरीणं महापसिद्धीओ। जह करुणाभिहतरुणो, कुसुमहिं समं फलुप्पत्ती ॥१०८॥ जिणसेवावल्लीए, एसो कुसुमुग्गमो जमिद्धीओ। हुंति तहा पुणऽवस्सं, सग्गपवग्गे फलसिरीओ॥१०९॥ अत्थियणं पीणतो, दाणेणं सो पुरम्मि पविसंतो। वण्णिजंतो धम्मिय-जणेण सगिहम्मि संपत्तो॥११०॥ तत्तो स नागदत्तो, चित्ते चिंतेइ पच्छिमनिसाए । कारिजइ जिणपूया, जीइ कएऽहं गओ जलहिं ॥१११॥ कणयमणिवसणचंदण-कुसुमेहिं
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