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________________ सभ्य० ॥ १५८ ॥ Jain Education सिरिमं जीवाहयारई नाम । आवयगयं अणुद्धिय, न जिमइ सुणिउं छुहत्तोऽवि ॥ ५६ ॥ थलमग्गंमि उ पुरिसे, स पेसए दुहियलोयताणकए । बहुदे सभासचउरं, जलमग्गे कीर पंचसयं ॥ ५७ ॥ पञ्चयकुंडलपडिए, ते पोए पिक्खिऊण रायसुओ । आगंतूणं सिंहल - पहुणो रण्णो निवेयंति ॥ ५८ ॥ सोऽवि सचिवेहि सद्धिं गिरिकुंडल्याउ जममुहाउछ । उद्धरणम्मि उवायं, चिंतेई ताण पोयाणं ॥ ५९ ॥ न य भुंजइ तो राया, ताणुद्धरणम्मि विगलिओ - वाओ । न य नियमेरं गरुया, लंघंति कयावि जलवि ॥ ६०॥ तो बीयदिणे पडहं, वायावर भूवई निए नयरे । जो पोए आई, तस्स पयच्छामि धणलक्खं ॥ ६१ ॥ तं सुणिय कण्णधारो, एगो बुडो मणम्मि चिंते । जाणतोऽहसुवायं, किं न धणं लेमि नरवइणो ? || ६२ ॥ नित्थारयामि तणए, दुक्खसमुद्दाओ पवहणजणंपि । अथिरेहिं पाणेहिं, तो पडहं छिवइ गंतूणं ॥ ६३ ॥ रायपसाया लद्धं, सवं दत्रं सुयाण दाऊणं । लहुपवहणेण चलिओ, स नागदत्तंतियं पत्तो ॥ ६४ ॥ तेसिं पंचसयाणं, पोयाणं अहिवरं वियाणित्ता । तं नागदत्तवणियं, भणेइ नियसामिणो चरियं ॥ ६५ ॥ तस्स य पुरओ साहइ, निग्गमणोवायमेस पोयाणं । मग्गविऊ बुड्डनरो, सुगुरू भवसायराउच ॥ ६६ ॥ सवोऽवि पोअलोओ, टहरिअसवणो सुणेइ तत्रयणं । सोऽवि हु तस्स य पुरओ, निग्गमणोवायमाइसइ ॥ ६७ ॥ सेलस्स अस्स सिहरे, महई देवस्स मंदिरे ढक्का । तीए सदं सोउं, गुहामुहे सयगुणीयं ॥ ६८ ॥ अइसंभंता भारुंडपक्खिणो नहयलंमि उडुंति । वलयाउ निस्सरंती, तप्पक्खपणुलिया पोया ॥ ६९ ॥ जुयलं । एगो पुण सो मरिही जो, ढक्कं वाइउं नरो For Private & Personal Use Only स०टी० ।। १५८।। janelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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