________________
KARAVARKARI
परिधूणियंसीसं ॥ १७३॥ परिसंते जह मेहे इक्को सुक्का जवासओ तरुसुं। तह पंचालो धिजाई, तम्गुणरसिएसु लोएK ॥ १७४ ॥ तो अबधारणबलिओ, पंचालो मच्छरेण विच्छुरिओ। रायं जंपइ मह चेव गंधाओ चोरिय-18 मिमेहिं ॥ १७५ ॥ रण्णा वुत्तं कह नजए इमं तो स ईसए झत्ति । नियविहियतरंगवई, पालित्तयकयसुउत्तिजयं ॥ १७६ ॥ संघं मणयं लजियमिव दट्ठमणिढुवारणट्ठाए । निद्दिट्ठसयलकिचो, सूरी कवडेण य मओत्ति ॥ १७७ ॥ पविसिय कुकु(कू)हियाए पहम्मि निस्सारियम्मि सूरिम्मि। सयलोविनयरलोओ,गुणगहणपरो रुयइ अहियं ॥१७॥
सीसं कहवि न फुटुं जमस्स पालित्तयं हरंतस्स । जस्स मुहनिज्झराओ, तरंगलोला नई बूढा ॥ १७९ ॥ पंचालवयहोणमेयं सुणित्तु पालित्तओ तओ झत्ति । संघमहूसव सद्धिं, उट्टइ एवं पयंपंतो ॥ १८० ॥ लोया पिच्छह चुजं इमिणा
पंचालसचवयणेणं । मरिओवि जीविओऽहं पीऊसरसाउ अहिएणं ॥ १८१॥ एवं विजिए तम्मि उ संघो आणंदिओ निवो कुविओ। पंचालं निविसयं कुणमाणो वारिओ तेहिं ॥ १८२ ॥ सूरीणं उवयारं नियावयारं च मुणिय
पंचालो। कम्मविवराउ जाओ सुसावओ सूरिपयभत्तो ॥ १८३ ॥ इय सुइरं काऊणं जिणवरसासणपभावणं भुलावणे । नाणेणं नियआउय-समयं परिजाणिऊण तओ ॥ १८४ ॥ विहियाणसणो सुहभावपरिणओ चइय माणुसं
खित्तं । सिरिपालित्तयसूरी, सुरवइसहभूसणं जाओ ॥ १८५ ॥ जुयलं । पालित्तयस्स गुरुणो गुरुसिद्धिरिद्धिमेयं । पलोइय विलोलियसत्तुवग्गं । भवा ! जिणिंदवरसासणउन्नईए, वित्तं पउंजह जहा सुजसं लहेह ॥ १८६ ॥ सिद्ध
Jan Education
n
al
For Private &Personal use Only
LOldjainelibrary.org