SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक स०टी० ॥१३८॥ जुयं ॥ १५९॥ कुणमाणो अइमित्तं जिणवरसासणपभावणुल्लासं । पइट्ठाणं पइट्ठाणं पुरमेस मुणीसरो पत्तो ॥१६॥ नाउं राया सूरीण नियपुरासन्नरम्मउजाणे । संकरओ आगमणं जाओ रोमंचकंचुइओ ॥ १६१ ॥ काऊण नयर-2 सोहं महूसवपुरस्सरं सपरिवारो। राया पंडियसहिओ सूरीणं सम्मुहं जाइ ॥ १६२ ॥ तम्मि समए विहप्फई गंतुं इय भूमिसामियं भणइ । पालित्ताणं संपइ चेव परिक्खं करिस्सामि ॥ १६३ ॥ रण्णा वुत्तं जुत्तं, झत्ति परिक्खेसु तस्स मइविहवं । तो सो भणइ तुमाणं थिरहत्थो अत्थि कोवि नरो? ॥ १६४ ॥ तो आहविउं हीरयनामं नियसेवयं नरवरिंदो । दंसेइ विहप्फइणो सोवि तयं सायरं भणइ ॥ १६५ ॥ हीरय! भायणमेयं, घएण परिपुण्णयं सिरं जाव । गंतुं सूरीण पुरो दंसिवि एवं भणिज्जासु ॥ १६६ ॥ तुम्हाण मंगलत्थं विबुहेहिं पेसियं तओ सूरी। जं जं करेइ चिटुं सा सा अम्हाण भणियबा ॥ १६७ ॥ तेणवि तहेव विहिए मुणिऊणं मुणिवरोवि तब्भावं । घयभायणम्मि सूई अइसुहुमं खिवइ लहु हत्थो ॥ १६८ ॥ भावत्थो पुण एसो-जह सूइयापवेसो जाओ घयभायणे तहा खिप्पं । पविसिय पुरम्मि तुहं मम्मविभेयं करिस्सामि ॥ १६९ ॥ सूरीहिं सो वुत्तो पंडियलोयस्सिमं पयंसेसुं । तेणवि नरिंदपुरओ ससूइयं भायणं धरियं ॥ १७० ॥ तं च विहप्फइ द8 कटुंव निचिट्ठओ दुहाहूओ । ता वित्थरेण सूरि पवेसए नियपुरे राया ॥ १७१ ॥ संघसमेयं सम्माणिऊण पालित्तयं महाराओ । सूरिकयममयसरियं तरंगलोलं कहं सुणइ ॥ १७२ ॥ पालित्तयनिम्मवियं अप्पुवरसं कहं सुणंतेहिं । रायप्पमुहबुहेहि न केहि १३८॥ Hann Educatan intentional For Private & Personal Use Only wwwane braryong
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy