SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education किं इमिणा ? ॥ १४५ ॥ साहुक्कारेणं चिय तुस्सामो नेय कणयदाणेणं । राया तो उल्लवई विउसत्तमहो इमं तुम्ह ॥ १४६ ॥ पासट्टियविबुहाणंनयणे वालित्तु विहसियं दहुं । रायं कविलो भासइ करकिओ नायपरमत्थो ॥ १४७॥ जइ नवि वण्णेसि तुमं ता परिवाराउ वण्णवावेसु । तो राया भोगवईविलासिणीए मुहं नियइ ॥ १४८ ॥ सा उण परमा सड्डी चिंतइ सासणपभावणासमओ । एसुच्चिय तो जंपर उम्मूलंती कुदिद्वितरुं ॥ १४९ ॥ ता गडयडंतु वाइंदगयघडा मयभरेण दुष्पिच्छा । जाव न पालित्तयपंचवयणनाओ परिष्फुरइ ॥ १५० ॥ को पालित्तयसूरी ? भद्दे ! जो वण्णिओ तए एवं । इय रण्णा वृत्ता सा पभणइ सर्वपि तत्तं ॥ १५१ ॥ राया जंपइ संपइ, सकयत्थं कुणइ नियविहारेण । सो कं देसं ? तो सा, भणेइ सिरिमन्नखेडपुरं ॥ १५२ ॥ उक्कंठिएण तत्तो, संकरनामा ससंधिविग्गहिओ । सूरीण आणणकए, आइट्ठो जाव भूवइणा ॥ १५३ ॥ ता मच्छरविच्छुरिओ, विहप्फई साहए महाराय ! । मह महपडिहसमुद्दे, पडिही सरिउब तस्स मई ॥ १५४ ॥ अह पंचालो जंप, कवित्तसत्तिं असिव फोरतो । महमइरविलुत्तकरो, सूरी स ससिव अत्थमिही ॥ १५५ ॥ तत्रयणमसहमाणा, भोगवई गुणवई पयंपेइ । अत्थमिओ य मयंको, पुण उइओ पावए पूयं ॥ १५६ ॥ तो नरवइणा वुत्तं चुज्जं जं जीवई य अत्थमिओ । पावेइ य सकारं अप्पुवं तस्स पंडिचं ॥ १५७ ॥ ता संकर ! गंतूणं कण्हडरायं पसाइउं कहवि । आणेह इत्थ सूरिं दूरी - कयकुमयवित्थारं ॥ १५८ ॥ तत्तो सो गंतूणं कण्हडरायस्स भणइ नियरण्णो । आएसं सोवि लहुं सूरिं पेसेइ संघ 1 tonal For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy