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________________ सम्य० 18॥ १३१ ॥ जाए पभायसमए पढमघरं तस्स इट्टवायस्स । सोवण्णमयं पिक्षिय सो जाओ विम्हिओ चित्ते चत्तस० टी० द॥१३२ ॥ अह पालित्तयसूरिं नमसणत्थं कयावि रिसहस्स । पुंडरगिरिम्मि पत्तं वंदिय नागज्जुणो भणइ ॥१३३॥ ॥१३७॥ भयवं ! करिय पसायं पयपंकयलेवविजसिद्धिं मे । देसु तओ सूरीविहु तग्गुणगणरजिओ भणइ ॥ १३४ ॥ जह महसि महिमनिलयं, पलयं पायाण वीयरायमयं । ता पत्ते सुवियत्ते तुमंमि विजं निवेसेमि ॥ १३५ ॥ अह सो सावयधम्म सूरीणं लेइ पायमूलम्मि । पयलेवविजसिद्धिं, तेविहु तस्स य पयच्छति ॥ १३६ ॥ सिरिसत्तुंजयतलहट्टियाइ नागज्जुणेण निम्मवियं । सूरीणं नामेणं सिरिपालित्तयपुरं तइया॥ १३७ ॥ अह सालिवाहणनिवे परिसाए सासणम्मि आसीणे । केइवि चउरो रिसिणो विरइयगंथा तहिं पत्ता ॥ १३८ ॥ पडिहारमुहेणं ते, तत्थ ठिया चेव पुच्छिया रण्णा। किं सत्थं किं माणं केण कयं? तेवि जपंति ॥ १३९ ॥ भेसजधम्मनिवनीइ-कामसत्थाणि लक्खमाणाणि । अत्तेयकविलवहफइपंचालेहिं कयाइंति ॥१४०॥राया सुणिऊण इमं तेसि परिक्खाकए पुणो भणइ । सो उ न खमो इत्तिय-मित्तं संखिवह तो गंथं ॥ १४१ ॥ काउं अलु अद्धं निवपासे तो गया तहेव पुणो। अद्धद्धयकरणेणं इगइगपायं करिय पत्ता ॥ १४२॥ चत्तारिवि तो रण्णा पवेसिया नियसहाइ पुट्ठा य । साहंति देव ! नियनियनामकं पयमिणं सुणसु ॥ १४३॥ जीर्णे भोजनमात्रेयः, कपिलः प्राणिनां दया। बृहस्पतिरविश्वास, पञ्चालः स्त्रीषु मार्दवम् ॥ १४४ ॥ तत्तो राया तुट्टो तेसिं जा देइ पीइदाणाई। तो अत्तेओ साहइ नरिंद ! लुक्खेण है SC-SCRECAUSESCOCCALOCAL Jan Education Interational For Private &Personal use Only Wwwatne brary:og
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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