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________________ ADSENDRASANNANGACASS फेडह वियणं रण्णो तो मंती तेहिं इय वुत्तो ॥६० ॥ गंतूण तए राओसंघस्स य सम्मुहो ठवेयबो । इय सो गहिउं सिक्खं गओ निवं कारइ तहेव ॥६१ ॥ ठाणट्ठिएहिं गुरुहिं जाणूवरि अंगुलिं भमंतेहिं । पीडा हरिया |रण्णो पढिया केणावि तो गाहा ॥ ६२॥ जह जह पएसिणिं जाणुयम्मि पालित्तओ भमाडेइ । तह तह मुरुंड-ई रायस्स सीसवियणा परिप्फुसइ ॥ ६३ ॥ इय सूरीणं सत्तिं सुणिउं नरनायगो पसन्नमणो । पडिवजिय जिणधम्म भत्तीइ पभावणं कुणइ ॥ ६४ ॥ तत्तो सूरी चलिओ पाडलिपुरसंघसंजुओ पुरओ। महुराइ देवनिम्मिय-थूभे देवे नमंसेइ ॥६५॥ कित्तियमित्तं संघं ठावित्ता तत्थ इयरपरियरिओ। सूरी चुंकारपुरे गुजरधरमंडणे पत्तो ॥६६॥ अह सूरी साहूसुं गएसु सन्वेसु विहरणाइकए । वसहिं सावयसाविय-विवजियं पिक्खिऊण तओ॥ ६७ ॥ रममाणे पिक्खेउं डिंभे बालत्तचंचलत्तेणं । कडिदेसे गोवित्ता रयहरणं रमइ तेहि सह ॥ ६८ ॥ जुयलं । तम्मि समयम्मि अप्पुव-सावया केवि ताण नमणत्थं । आगंतूणं तं चिय वसहिं पुच्छंति तेवि तओ ॥ ६९ ॥ तेसिं दूरं मग्गं दंसिय अन्नेण विसिय वसहीए। नियसिय सेयं पडयं सिंहासणगम्मि उवविट्ठा ॥ ७० ॥ जुयलं । भत्तिभरनिन्भरंगा| पत्ता ते सावया नमिय सूरिं । उवविट्ठा अइहिट्ठा जाणिअचिट्ठावि य अदुट्ठा ॥ ७१ ॥ तब्भावं मुणिऊणं सूरी है वाहरइ महुरवाणीए । बालत्ते रमणमई बलावि विउसंपिहु जिणेई ॥ ७२ ॥ तेवि सविम्हयहियया परुप्परं संलवंति कह भावो। नाओ गुरुहिं ? तह पज़वासिऊणं गया सगिह ॥७३॥ कइया विजणे पुणरवि सगडे जंते निरिक्खिउं Jan Educatan Interational For Privale & Personal Use Only wwwciainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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