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________________ सम्य० ॥१३५॥ सूरी । कीलाइ दिन्नचित्तो डिंभगणेहिं सह मिलेइ ॥ ७४ ॥ जा सगडपिंजएसुं चडेर ओयरइ ताव आवेउं । केहिवि विउसनरेहिं डिंभा एवं समुल्लविया ॥ ७५ ॥ भो ! डिंभा कहह फुडं पालित्तयवाइणो कहिं वसही ? । सूरीहिवि ते नाया धुवं इमे वाइणो केऽवि ॥ ७६ ॥ तेसिं वंचिय दिट्ठि वसहिं गंतूण ओढिऊण पडं । चलणे पसारिकणं सुत्तो कवडेण मुणिराओ ॥ ७७ ॥ वसहीदारं पत्ता निविजणं लक्खिऊण ते विबुहा । कुक्कुडसरं कुणंता मज्झे पविसंति जा झति ॥ ७८ ॥ ता तद्धरिसणहेउं सूरीहि कओ बिरालउग्गसरो । तं सुणिय भणति बुहा अहुणावि जिया इमेणऽम्हे ॥ ७९ ॥ तिमिरेहिं व रविबिंबं अम्हेहिं एस दुज्जओ नूणं । तो नमिउं सूरिपए विउसा पभणंति इय गाहं ॥ ८० ॥ पालित्तय ! कहसु फुडं सयलं महिमंडलं भमंतेणं । दिट्ठो सुअ य कत्थवि चंदणरससीयलो अग्गी ॥ ८१ ॥ सिरिपालित्तयसूरी विबुहाणं ताण मग्गओ भणइ । दिट्ठं सुयमणुहूयं वण्णिजंतं मए सुणह ॥ ८२ ॥ अयसाभिओगसंदुमियस्स पुरिसस्स सुद्धहिययस्स । होइ वहंतस्स फुडं चंदणरससीयलो अग्गी ॥ ८३ ॥ उत्तरमेयं | लहिउं तओ पसंसंति पंडिया बहुसो । तुह चेव जए कित्ती मुणिराय ! नडीव नचेइ ॥ ८४ ॥ जुग्गे नाउं गुरुणा तप्पुरओ धम्मदेसणा विहिया । तं सुणिय केवि दिक्खं पडिवन्ना केवि सङ्घत्तं ॥ ८५ ॥ बहुविहपभावणुब्भव - कित्तिभरेणं दिसाउ धवलंतो । सिरिसत्तुंजयरेवय- तित्थे कुणे जत्ताओ ॥ ८६ ॥ अह पत्तो खेडउरे तत्थ य सूरी लहेइ पुण्णवसा । जोणीनिमित्तविज्जा - सिद्धाभिहपाहुडे चउरो ॥ ८७ ॥ जोणीपाहुडनामे पढमे जीवाण तह Jain Education International For Private & Personal Use Only स० टी० ॥१३५॥ www.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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