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________________ सम्य० ॥११९॥ Jain Educatio पयंडो ॥ ६४ ॥ पलयानिलउल्लासियनयचक्कमहासमुद्दलहरीसु । सुगयमयधरणिवलयं समंतओ बोलियं तेण ॥ ६५ ॥ दोवायालपमाण बाणुवलद्धीमहल चिक्खिले । बुद्धगवी तह खुत्ता जह नीहरिडं न सकेइ ॥ ६६ ॥ बहुहेउजुत्तिजुत्तं अइगुविलत्थं पसत्थवण्णेहिं । वुत्तूण पुत्रपक्खं दिणछक्कं निवइपञ्चक्खं ॥ ६७ ॥ सन्तमदिणम्मि मल्लो बुद्धाणंद भणइ अणुवायं । काउं मह वयणाणं वत्तवमिओ ठिओ मोणे ॥ ६८ ॥ जुयलं । सच॑मि नरिंदाइलोए उत्तु नियगिहं पत्ते । बुद्धाणंदोवि गओ तन्भणियं चिंतइ निसाए ॥ ६९ ॥ सो मलवाइदिणयर - भणियविगप्पाइकिरणनियरम्मि ! । घूउच्च अईवंधो भमेइ तद्वाणमलहंतो ॥ ७० ॥ जं जं वाइयवयणं दीवं काऊण उयरिया मज्झे । लिहियं तं जं जाणइ बुद्धाणंदो नउण अन्नं ॥ ७१ ॥ तत्तो वीसरियम्मी सयलम्मिवि पुत्रपक्खवयणम्मि । हद्धी रायसहाए किमुत्तरं तस्स दाहामि ? ॥ ७२ ॥ एवं बुद्धाणंदो खडिया - हत्थो अकित्तिभयभीओ । पाणेहि परिचत्तो खलुब सो सजणजणेहिं ॥ ७३ ॥ रायसहाए मिलिए लोए सयलम्मि मल्लवाइजुए । इक्को नवरि न एओ बुद्धादो पुणो तत्थ ॥ ७४ ॥ किं नागओ स अज्जवि पडिवाई ? तो भांति तन्भत्ता । निचिंतो निद्दसुहं अणुहवमाणो ध्रुवं होही ॥ ७५ ॥ जग्गइ अज्जवि न हु सो बुद्धाणंदुत्ति तो निवो भणइ । कुसलं तस्स न नज्जइ एसा जं दीहिया निद्दा ॥ ७६ ॥ नियपुरिसा पट्टविया रण्णा तं पिक्खिऊण आवेह । ते गंतूणं उग्घाडिउं च दारं निहालंति ॥७७॥ बुद्धाणंदो दिट्ठो दुहावि गयपाणओ तओ तेहिं । उड्डमुहो खडियाए भूमीए किंपि विलिहंतो ॥ ७८ ॥ तत्तो आ For Private & Personal Use Only स० टी० ॥११९॥ w.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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