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________________ Jain Education in सिओ वलनियरीए ॥ ५० ॥ संघेण पसन्नेणं मल्लं अम्भस्थिऊण मुणिपवरं । नयचक्कविवरणम्मि धुरंमि लिहिओ इय सिलोगो ॥ ५१ ॥ जयति नयचक्रनिर्जित - निःशेषविपक्षलक्षविक्रान्तः । श्रीमल्लवादिसुरिर्जिनवचननभस्तलविवस्वान् ॥ ५२ ॥ तयणु जिणाणंदगुरुं संघेण भत्थिऊण आणीओ । अजियजसजक्खमले संठावर सूरिपयवीए ॥ ५३ ॥ तिन्निवि गुणमणिनिहिणो पडिवक्खजयम्मि लद्धमाहप्पा | तेसुवि अजियजसेणं पमाणसत्थं कयं पवरं ॥ ५४ ॥ पुवगयसुत्तधारी पमाणविज्जाइ विजियसुरसूरी । मल्लो वाइयसलो मणम्मि इय चिंतिउं लग्गो ॥ ५५ ॥ जिणसासणमालिन्नं, अम्ह गुरूणं जयम्मि जं जायं । बुद्धाणंदाओ तं सलुव खुडुक्कए चित्ते ॥ ५६ ॥ कइया सो महदियहो होही ? जेणं जिणित गुरुवेरं । जिणसासणगयणयलं उज्जोइस्सामि सूरुव ॥ ५७ ॥ इय चिंतिय भरुयच्छे गंतूण भणावए नरिंदाओ । मलो मलुच वली वायकए बुद्धसीसवरे ॥ ५८ ॥ तो तक्खणेण राया बुद्धानंदं भणेइ आहविडं । सो पडिभणइ रणाओ परम्मुहा हुंति किं सूरा ? ॥ ५९ ॥ राया सयं सहाए सभा सम्भूयवयणगुणकुसला। वाइपडिवाइणो उण सपक्खकलिया समुवइट्ठा ॥ ६० ॥ समेहिं ते भणिया को तुम्हाणं भणिस्सइ पढमं ? | बुद्धाणंदेण तओ वृत्तमिमो चेव जंपेउ ॥ ६१ ॥ पुत्रं विबुहसमक्खं गुरुणो एयस्स खंडियं माणं । तो इमिणा बालेणं लज्जाहेऊ मह विवाओ ॥ ६२ ॥ नूणं इमस्स लज्जा होही वाए जियस्स इय मल्लो । हत्थव गडयडतो पुचं | जंपेइ निस्संको ॥ ६३ ॥ जिणमयसम्मयपणविहपञ्चक्खपरुक्खतिक्खबाणेहिं । मलो मध रणे, बुद्धबलं खंडइ For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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