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________________ सम्य० ॥१०३॥ SRACORPOREAM-MROSAROSE अच्चसु जिणं पभावसु, सुसासणं धरसु सम्मत्तं ॥२॥ तओ अजपभिई मए जीवा अत्तणो जीवुव रक्खयबत्ति स०टी० भणिय तिरोहूया कालिया । अह पणामपरं मंतिसुयमालिंगिय भीमो पुच्छइ-मित्त ! कहं तुममेयस्स दुट्ठचिट्ठियं हामुणंतोवि वसे पडिओ ?, सोवि साहइ-सामि! सुणेसु, अजेव रयणीए पढमे जामे तुम्ह वासभवणं सुन्नं पलोइय पिया पाहरिए वाहरइ-रे तुम्ह सामी अज केण हेउणा इत्थ न पलोइजइ ?, तेवि ससंभमं भणंति-जहा केणावि अम्हे जागंतावि मुसिया, तओ सवेवि पलोइउं लग्गा, न कत्थवि तुम्हे पत्ता, तो गंतूण पिउणो पुरओ निवेइयं-देव ! केणवि कुमारो अवहरिओ परं न नजइ । तओ राया सचंतेउरसहिओवाउलीहूओ पलविङ लग्गो, पुरजणो य, तम्मि समए पत्तस्स गत्तं संकमिय कुलदेवयाए संलत्तं-महाराय ! मा अधिइं कुणेसु, तुह नंदणो पावेण जोइणा 2 उत्तरसाहगमिसेण तस्स सीसं गहिउकामेणावहरिओ, पुण्णप्पभावण तओ नीओ कमलक्खाजक्खिणीए नियम-18 वणे, थोवदिणेहिं चेव महाविभूइए आगंतूण तुम्ह नयणे आणंदिहित्ति जंपिय गया सट्टाणं देवी । अहं पुण तबयणसंवायणनिमित्तं उवस्सुइं गहिउं सगिहाओ निग्गओ, त्तओ केणवि पुरिसेण वजरियं-तुह कज्जसिद्धी झत्ति होउत्ति, पसत्थउवस्सुइवयणसवणरंजिओ जाव चलिओ सगिहाभिमुह, ताव नहंगएण एएण जोइणा उप्पाडिऊण इहाणीओ, पुण्णवसेण उण तुम्हाण मिलिओ, अओ एस कवाली परमोवयारी मज्झता एयं धम्मोवएसदाणेण उ ॥१०३॥ वगरेसु । तओ जोईवि जोडियकरसंपुडो भणइ- कुमार ! जो कालीए जीवदयापरिपालणरम्मो धम्भो अंगीकओ, Jain Education For Privale & Personal Use Only H ainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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