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नयरे संपत्तो, जिणसासण उन्नई कुणइ ॥ ८२ ॥ सा समणी समणीहिं, विहरंती सिक्खए दुविहसिक्खं । उग्गतवं च कुणंती मुसुमूरइ पावकम्माई ॥ ८३ ॥ अह स सुरो चविऊणं, मयंकनामेण खेयरो जाओ । पढिय निरवज्जविज्जो, जुवणलीलं समणुपत्तो ॥ ८४ ॥ अह सा रयणीसमए, अज्जा मयणावली ठिया पडिमा । वसहीदुवारदेसे, पलोइया तेण खयरेणं ॥ ८५ ॥ तं पिक्खिऊण सहसा, लद्वावसरेण विसमबाणेणं । सवंगं वाणेहिं विद्धो सुहडुब समरम्मि ॥ ॥ ८६ ॥ नियरिद्धिं दंसंतो विमाणवासीव वरविमाणगओ । कंदप्पसप्पविसघारिउव इय भणइ तं | समणिं ॥ ८७ ॥ उप्पलदलसुकुमालं, गयगमणि ! मणोहरं सुराणंपि । तबकठिणकुठारेणं, कीस विणासेसि तणुलइयं ? ॥ ८८ ॥ जइ एएण तवेणं, महेसि मणवंछिया ! इँ भोगाई । ता मह वयणं सुंदरि ! कुणेसु नियसवणअवयंसं ॥ ८९ ॥ खयरिंदकुमारेणं मयंकनामेण रयणमालाए । जंतेण करगहत्थं, पलोइया तं मए इहई ॥ ९० ॥ ता आरुहसु विमाणं भुंजसु भोए मए समं तरुणि ! । तुह संपत्तीए पुण, चत्ता सा रयणमालावि ॥ ९१ ॥ एवं बहुप्पयारं खयरिंदे चाडुयं कुर्णतेवि । तिलतुसमित्तंपि मणं नहु चलियं तीइ झाणाओ ॥ ९२ ॥ पुवभवनेहनडिओ जह जह रायं पयासए खयरो । तह तह सा तं तज्जइ परगहपट्टिभसणु ॥ ९३ ॥ अणुकूले उवसग्गे, खयरपउत्ते झडित्ति हणिऊणं । मुहझाणरया अज्जा, समज्जइ केवलं नाणं ॥ ९४ ॥ केवलमहिमं देवे, कुणमाणे पिक्खिऊण स मयंको । विम्हियफ़ारियनयणो, पुणो पुणो तं पलोएइ ॥ ९५ ॥ तो भगवईइ भणिओ नए समं खयर ! सुरभवे रमिउं । पुण
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