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________________ सम्य० ॥ ९८ ॥ पडिभणिया, भद्दे ! जो तुम्ह पुवभवभत्ता । देवो आसी सो सुयरूवेण तुहंतियं पत्तो ॥ ६९ ॥ पमुइयहियया पुणरवि पुच्छइ भयवं ! सहाइ तुम्हाणं । चिट्ठइ सो सुरकीरो नवत्ति पसिऊण साहेह ॥ ७० ॥ तेवि भणिया जो तुह पुरओ चिट्ठे भूसणसणाहो । सो एसो तियसवरो तुह पुवभवस्स पाणपिओ ॥ ७१ ॥ सा जोडियकरकमला तं देवं भणइ साहु उवयरियं । जं जम्मसहस्सेहिवि, तुम्हाउ न ऊरिणं होमि ॥ ७२ ॥ तियसो तं पड़ जंप, अजदिणा सत्तममि दिवसम्मि । चत्रिउं सुरलोयाओ, खयरसुओऽहं भविस्सामि ॥ ७३ ॥ तत्थ तए पडिवोहो, मह कायवत्ति तीइ सो भणिओ । जइ मह होही नाणं, नूणं तो बोहइस्सामि ॥ ७४ ॥ इय सोऊणं देवो सपरियणो झत्ति सुरपुरं पत्तो । मयणावलीवि निवेयसंगया विन्नवेइ निवं ॥ ७५ ॥ देव ! नराइभवेसुं बहुसो विविहाइँ विस - यसुक्खाई । अणुहवियाई तहाविद्दु मणतित्ति न होइ जीवस्स ॥ ७६ ॥ तो सुरभवम्मि भोगा तुम्ह समं नरभविम्मिवि पभुत्ता । तो पजत्तमिमेहिं, पसीय हे सामि ! सिवमग्गं (ग्गे) ॥ ७७ ॥ राया भणेइ सुंदरि ! कप्पलयं कहवि | पाणिकमलगयं । परिहरइ कोऽवि कुसलो, किं सुविणेविहु कयावि पिए ! ॥ ७८ ॥ देवी जंपइ सामिय ! मुणेमि नेहा तुम्ह विहियाई । तहवि पसिऊण सिग्धं दिक्खत्थं मं विराजे ॥ ७९ ॥ तन्नेहमोहियमई पडिवयणं जा न | देइ नरनाहो । ता सहसा गुरुपासे, सा पद्मजं पवज्जेइ ॥ ८० ॥ बाहजलाविलनयणो पढमं मुणिपुंगवं नमइ राया । दुक्खसगग्गरवयणो मयणावलिअज्जियं पच्छा ॥ ८१ ॥ सिरिकेवलिणो पासे सावयधम्मं गहेवि नरनाहो । निय Jain Education International For Private & Personal Use Only स० टी० ॥ ९८ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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