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________________ CESS हाणयं नयरं ॥४६॥ गीयत्वमुणिसमेया, भमिया पइमंदिरं वसहिहेउं । सा तत्थ नेव पत्ता, गुरूण तो सुमरियं वयणं ॥४७॥ तत्थ य दुल्लहराओ, राया रायव सबकलकलिओ । तस्स पुरोहियसारो, सोमेसरनामओ आसि |॥४८॥ तस्स घरे ते पत्ता, सोऽविहु तणयाण वेयअज्झयणं । कारेमाणो दिट्ठो, सिट्ठो सूरिप्पहाणेहिं ॥४९॥ सुणु वक्खाणं वेयस्स, एरिसं सारणीइ परिसुद्धं । सोऽवि सुणंतो उप्फुल्ललोयणो विम्हिओ जाओ ॥५०॥ किं बम्हा रूवजुयं, काऊणं अत्तणो इह उइन्नो । इय चिंततो विप्पो, पयपउमं बंदई तेसिं ॥५१॥ सिवसासणस्स जिणसासणस्स सारक्खरं गहेऊणं । इय आसीसा दिन्ना, सूरीहि सकजसिद्धिकए ॥५२॥ अपाणिपादो ह्यमनो ग्रहीता, पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः । स वेत्ति विश्वं न हि तस्य वेत्ता, शिवो ह्यरूपी स जिनोऽवतादः ॥ ५३॥ तो विप्पो ते जंपइ, चिट्ठह गुट्टी तुमेहि सह होइ । तुम्ह पसाया वेयत्थपारगा हुंति दुसुया मे ॥५४॥ ठाणाभावा अम्हे चिट्ठामो कत्थ इत्थ तुह नयरे? । चेइयवासियमुणिणो, न दिति सुविहियजणे वसिउं ॥ ५५ ॥ तेणवि सचंदसालाउवरिं ठावित्त सुद्धअसणेणं । पडिलाहिय मज्झण्हे, परिक्खिया सबसत्थेसुं॥५६॥ तत्तो चेइयवासिसुहडा तत्थागया भणन्ति इमं । नीसरह नयरमज्झा, चेइयवज्झो न इह ठाइ ॥ ५७ ॥ इय वुत्तंतं सोउं, रणो पुरओ पुरोहिओ भणइ । रायावि सयलचेइयवासीणं साहए पुरओ ॥ ५८॥ जइ कोऽवि गुणट्ठाणं, इमाण पुरओ विरूवयं भणिही । तं नियरजाओ फुडं, नासेमी सकिमिभसणुव ॥ ५९ ॥ रण्णो आएसेणं, वसहिं लहिउं Jain Education a nal For Private & Personal Use Only NMainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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