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________________ सम्य० ॥७६॥ Jain Education सिंहासणोवविट्ठो, दिट्ठो हिट्टेहि विगयकट्ठेहिं । सूरुव तिवतेओ, गणहारि वद्धमाणगुरू ॥ ३३ ॥ जुयलं । हरिसभरपुलइयंगा, खंधा उम्मूलिऊण दीवीओ । ते विहसियनयणजुया, पणमंति गुरूण पयकमलं ॥ ३४ ॥ साहंति सूरिसेहर !, तुह दंसणसहसकिरणउग्गमओ । चिरपरिचियमम्हाणं, महातमं झत्ति परिगलियं ॥ ३५ ॥ ता पसिय भवण्णवओ, दुग्गहकुग्गाहनिवहदुग्गाओ । नियदिक्खपोयमारोविऊण अम्हे नयह पारं ॥ ३६ ॥ सूरीवि भणइ वच्छा ! पच्छा गिण्हेसु अम्ह पवजं । पढमं जिणमयतत्तं, वीमंसह हिययमज्झमि ॥ ३७ ॥ जह जह सुणंति ते दोऽवि जिणमयं तेसिं तह तह खिप्पं (क्खिप्पं ) । पलयं गच्छइ विज्जाठाणरुई पावठाणु || ३८ || सिद्धतामयपाणेण, मिच्छत्तविसेसमंतओ तेसिं । नट्टे गुरूण पासे, पवज्जं दोवि गिण्हति ॥ ३९ ॥ दिन्नं गुरूहिं नामं, पढमस्स जिणेसरुत्ति विक्खायं । वीयस्स बुद्धिसायर, इय नामं बुहजणप्पयडं ॥ ४० ॥ संगहियदुविहसिक्खा, दिक्खदिणाओ अभिग्गहसविक्खा । निस्सेसागमसायरपारगया दोऽवि ते जाया ॥ ४१ ॥ छत्तीसगुणसमिद्धे, गीयत्थे जाणिऊण ते दोऽवि । सूरिपए संठविया, गुरुहिं दिणयरमयंकुव ॥ ४२ ॥ जिणिसरसूरी तह बुद्धिसायरो गणहरो दुवे कइया । सिविद्धमाणसूरीहि एवमेए समाइट्ठा ॥ ४३ ॥ वच्छा ! गच्छह अणहिल्लपट्टणे संपयं जओ तत्थ । सुविहियजइप्पवेसं, चेइयमुणिणो निवारंति ॥ ४४ ॥ सतीए बुद्धीए, सुविहियसाहूण तत्थ य पेवसो । कायवो तुम्ह समो, अन्नो नहु अत्थि कोऽवि विऊ ॥ ४५ ॥ सीसे धरिऊण गुरूणमेयमाणं कमेण ते पत्ता । गुज्जरधरावयंसं, अणहिल्लभि - For Private & Personal Use Only स० टी० ॥ ७६ ॥ ainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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