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________________ सटी सम्यक ॥५१॥ णपुत्तो चिंतामणिब्य लहिऊणं । धम्म सेवइ दढयरपरिणामो विगयमिच्छत्तो ॥१२॥ धारिजइ इन्तो सायरोवि कल्लोलभिन्नकुलसेलो । नहु अन्नजम्मनिम्मिय-सुहासुहो कम्मपरिणामो ॥१३॥ एवं परिभावंतो, विगयविसाओ है सहेइ वियणाओ। धम्मरुई सावजं, मणसावि न चिंतइ तिगिच्छं ॥ १४ ॥ अह नियसहाइ हरिणा, पसंसिओ एगया स धम्माओ । न य चालिज्जइ एसो, अहो अहो धम्मतत्तरुई ॥१५॥ तव्वयणं सोऊणं, दो देवा माणसंमि असहंता । काऊण विजरूवं, तस्स सगासं समल्लीणा ॥ १६ ॥ पभणंति तस्स सयणे, जइ एसो बालगो अबालमई । अम्हुवइट्टवयारं, करेइ ता होइ नीरोगो ॥ १७ ॥ तेऽविहु साहंति कहेसु संपयं पसिय करिय कारुणं । तो वजरंति विजा, सावजं किरियमेरिसयं ॥ १८ ॥ पढमे जामे महुणो-बलेहणं पच्छिमंमि सुरपाणं । मक्खणमीसियकूर, मंसजुयं निसि हि भुत्तव्यं ॥१९॥ सो दियतणओ सोउं, तं किरियं विजभासियं पावं । पभणेइ नाहमेयं, ४ करेमि जीवाण वहहेउं ॥२०॥जओ भणियमागमे-मज्जे महुंमि मंसंमि, नवणीयंमि चउत्थए। उप्पजंति असंखा, तब्वण्णा तत्थ जंतुणो ॥२१॥ इय जीवाणं घायण-पराइ किरियाइ नत्थि मे कजं। जीए अइसयघोरे, नरए पाडिजए अप्पा ॥ २२॥ सकरुणमिव तो विज्जा, भणंति तं भह ! मुंच कुवियप्पं । पढमं साहणमेयं, देहं धम्मस्स विति जओ ॥ २३॥ ता तं रक्खेसु सया, सावजणावि किरियकरणेण । पावस्स तस्स सुद्धिं, पच्छा य तवेण कुजासु ॥ २४ ॥ तो स दिओ ते जंपइ, अइसावजं करित्तु जइ किरियं । कीरइ पच्छा सुद्धी, ता तीए होउ पजत्तं (CCARRORCURRRRRORE का॥५१॥ Jain Education Interational For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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