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________________ श्रीस्थानाङ्ग सूत्र दीपिका वृत्तिः । ॥३५९॥ Jain Education Interna से ण मुंडे भवित्ता जाव पव्वइप, तस्स ण एवं भवइ, जया णं अह अगारवास' आवसामि तया णं अहं संवाहण - परिमद्दण - गातभंग-गातच्छोलणाई' लभामि, जप्पभि चणं अहं मुंडे जाव पव्वइप तप्पभिइ चणं अहं संवाहण जाव गातच्छोलणार णो लभामि, से णं संवाहण जाव गातच्छोलणाई आसाएमाणे जाव मण उच्चावच नियच्छर विणिग्धायमावज्जइ चउत्था दुहसेज्जा ४ । चत्तारि सुहसेज्जाउ पं० त ० तत्थ खलु इमा पढमा सुहसेज्जा, से ण मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइप णिग्गंथे पावणे णिस्सकिए णिक्कखिए णिव्वितिगिच्छे णो भेदसमावण्णे णो कलुससमावण्णे णिग्गंथ पावयण' सद्दहर पत्तियह रोएइ, णिग्गंथ पावयण सद्दहमाणे पत्तियमाणे रोपमाणे णो मण उच्चावयं नियच्छर णो विणिग्धायमावज्जइ पढमा सुहसेज्जा १, अहावरा दोच्चा सुहसेज्जा से णं मुंडे जाव पव्वइप सपण लामेण तुस्सइ परस्स लाभ णो आसाएइ णो पीछेइ णो पत्थेइ णो अभिलसर, परस्स लाभ अणासायमाणे जाव अणभिलसमाणे णो मण उच्चावयं नियच्छर णो विणिग्धायमावज्जर दोश्या सुहसेज्जा २, अहावरा तच्चा सुहसेज्जा ( ० पडिमा ) - से ण' मुंडे भविता जाव पव्वद दिव्यमाणुस्सप कामभोगे णो आसापड जाव णो अभिलसर, दिव्वमाणुस्सर कामभोगे अणासायमाणे जाव अणभिलसमाणे णो मण उच्चावयं नियच्छर णो विणिग्धायमावज्जइ तच्चा सुहसेज्जा ३. अहावरा चउत्था सुहसेज्जा से णं मुडे भवित्ता जाव पव्वइप तस्स णं एवं भवइ-जइ ताव अरहंता भगवंतो हट्ठा आरोग्गा बलिया कल्लसरीरा अण्णतराई उरालाई कल्लाणाई विपुलाई पयत्ताई पग्गहियाई महाणुभागाई कम्मक्खयकारणाइ तवोकम्माई पडिवज्जति किमंग पुण अह अभोवगमिउवक्कमिय' ( उ ) वेयण णो सम्म सहामि खमामि तितिक्खेमि अहियासेमि, मम च णं अम्भोवगमिउवक्कमियं (उ)सम्म असहमाणस्स अक्खममाणस्स अतितिक्खे For Private & Personal Use Only सू० ३२५ । ॥३५९॥ www.jainelibrary.org
SR No.600142
Book TitleSthanang Sutra Dipika Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalharsh Gani, Mitranandvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size23 MB
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