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________________ श्रीस्थानाङ्ग सू०३२० । दीपिका वृत्तिः । ॥३४७॥ -000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 एवं बलेण सुपण य ४,१३, एवं बलेण सीलेण य ४,१४, एवं वलेण चरित्तण य ४, १५, चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-रूवस पण्णे णाम पगे को सुयस पण्णे ४, १६, एवं रूवेण य सीलेण य४, १७, एवं रूवेण चरित्तेण य ४१८, चत्तारि पुरिसज्जाया ५००-सुयसंपण्णे णाममेगे जो सीलसंपण्णे ४, १९, एवं सुरण चरित्तेण य ४, २०, चत्तारि पुरिसजाया ५० त०-सीलसपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे ४, २१, पते एकवीस भंगा भाणियव्वा । चत्तारि फला पं० त०-आमलगमधुरे मुद्दियामधुरे खीरमहुरे खंडमहुरे, एवामेव चत्तारि आयरिया पं० त०-आमलगमधुरफलसमाणे जाव खंडमहुरफलसमाणे, चत्तारि पुरिसजाया प० त०आयवेयावञ्चकरे णाम एगे णो परवेयावच्चकरे ४, चत्तारि पुरिसजाया पंत-करेइ णाम एगे वेयावच्चो पडिच्छेइ, पडिच्छइ णाम एगे वेयावच्चो करेइ ४, चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-अट्टकरे णाम एगे जो माणकरे, माणकरे णाम एगे णो अट्ठकरे, एगे अट्टकरेविमाणकरेवि, एगे णो अट्ठकरे जो माणकरे, चत्तारि पुरिसज्जाया पं० त०-गणट्टकरे णाम पगे णो माणकरे ४, चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-गणसंगहकरे णाममेगे णो माणकरे ४, चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-गणसोभकरे णाम पगे जो माणकरे ४, चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-गणसोधिकरे णाम एगे जो माणकरे ४, चत्तारि पुरिसजाया पंत-रूवणाममेगे जहाति को धम्म, धम्म णाम एगे जहाति णो रूव, एगे रूपंपिजहाति धम्मपि जहाति, एगेको रूव जहाति णो धम्म जहाति चत्तारि पुरिसजाया पंत-धम्म नाममेगे जहइ णो गणठिति ४.चत्तारि पुरिसजाया पं०-पियधम्मे णाममेगे को दढधम्मे, दढदधम्मे नाममेगे जो पियधम्मे, पियधम्मे नाममेगे दढधम्मे नाममेगे [एगे पियधम्मेवि दढधम्मेवि), पगे णो पियधम्मे णो दढधम्मे, चत्तारि आयरिया ५० त-पब्वायणायरिए णाममेगे को उबट्ठावणायरिए, उवट्ठावणायरिए णाममेगे जो पब्वायणायरिए, ॥३४७॥ Jain Education For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600142
Book TitleSthanang Sutra Dipika Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalharsh Gani, Mitranandvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size23 MB
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