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________________ सू० ३०३-३०४ ३०५। श्रीस्थानाङ्ग सूत्रदीपिका वृत्तिः । एकमेरुसम्बद्धवक्तव्यतायाश्चतुर्वप्यन्येषु समानत्वाद्, एतदेवाह-'एव'मित्यादि, अमुमेवातिदेश सङ्ग्रहगाथयाऽऽह'जबूद्दीव'त्यादि, व्याख्या-जम्बूद्वीपस्येद जम्बूद्वीपक तं वा गच्छतीति जम्बूद्वीपग', 'जम्बूद्वीपे यदि ति क्यचित्पाठः, अवश्यंभावित्वाद् वाच्यत्वाद् वाऽऽवश्यक जम्बूद्वीपकावश्यक जम्बूद्वीपगावश्यक वा वस्तुजातं, तुः पूरणे, किमादि किमन्त चेत्याह-कालात् सुषमसुषमालक्षणादारभ्य चूलिका-मन्दरचूलिकां यावद् यत्तदिति गम्यते, धातकीखण्डे पुष्करवरद्वीपे च यो पूर्वापरी पाश्चौं प्रत्येक पूर्वार्द्धमपरार्द्ध च तयोः पूर्वापरेषु वर्षेषु वा-क्षेत्रेष्वन्यूनाधिक द्रष्टव्यमिति शेष इति ।। जवूद्दीवस्स ण दीवस्स चत्तारि दारा पंत-विजये वेजयंते जयंते अपराजिए, ते ण दारा चत्तारि जोयणाई विक्खंभेण तावइय' चेव पवेसेण' पन्नत्ता, तत्थ ण चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितिया परिवसंति, तं०-विजये वेजयंते जयंते अपराजिए (सू० ३०३) । जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेण चुल्लहिमचंतस्स वासहरपब्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुद्दतिण्णि तिण्णि जोयणसयाई ओगाहेत्ता पत्थ ण चत्तारि अंतरदीवा पं० त-पगूरूयदीवे आभासियदीवे वेसाणियदीवे नंगोलियदीवे, तेसु ण दीवेसु चउविहा मणुस्सा परिवसति, त-पगूरूया आभासिया बेसाणिया णंगोलिया, तेसि ण दीवाण चउसु विदिसासु लवणसमुद्द चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई ओगाहेत्ता पत्थ ण चत्तारि अतरदीवा ६० त-हयकण्णदीवे गयकण्णदीवे गोकण्णदीवे संकुलिकण्णदीवे, तेसु ण दीवेसु चउब्विहा मणुया ५० त-हयकण्णा गयकण्णा गोकण्णा संकुलिकण्णा, तेसि ण दीवाण' चउसु विदिसासु लवणसमुद्द पंच पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता पत्थ ण चत्तारि अंतरदीवा प० त०आयसमुहदीवे मिंढमुहदीवे अओमुहदीवे गोमुहदीवे, तेसु ण दीवेसु चउब्विहा मणुया 0000000000000000000000000000000000000000000000000000 ॥३२५॥ Jan Education For Privals & Fersonal use only www.jainelibrary.org
SR No.600142
Book TitleSthanang Sutra Dipika Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalharsh Gani, Mitranandvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size23 MB
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