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परन्तु श्रीखरतरगच्छेश्वर श्रीमजिनदेवसूरीश्वर के आदेश से पाठक प्रवर श्रीसाधुरङ्गगणि द्वारा सं १५९९ वर्षे सङ्कलित "दीपिका" नामक ग्रंथका प्रथम वार ही मुद्रण हो रहा है। __ प्रस्तुत सूत्रकृताङ्ग की संक्षेपार्थ बोधिनी "दीपिका" के सम्पादन में गणिवर्य श्री बुद्धिमुनिजी महाराज द्वारा सम्प्राप्त प्रतियों का परिचय इस प्रकार है। -
(१) प्रति उंझाज्ञानभंडार की थी, आगमप्रभाकर मुनिवर्य श्री पून्यविजयजी महाराज द्वारा मिली थी जिस का लेखनकार्य इस प्रकार है
संवत १९१४ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्दश्याम् लिपिकृतार्थ पुस्तिका उपाध्याय महेरचन्द्रेण श्रीइन्दोरमध्ये श्री केसरियानाथजी प्रसादात् ।।
(२) प्रति पूना के भान्डारकर-प्राच्य विद्यासंशोधन मन्दिर की थी पत्र संख्या २१३ । इसके अंत में लिखनेवाले का नाम और संवतादि नहीं दिये है, यह प्रति श्रीयुत् अगरचंदजी नाहट्टा द्वारा प्राप्त हुई थी।
(३) प्रति फलोदी (राजस्थान ) मोटी धर्मशाला में श्री संघ के ज्ञानमंदिर से प्राप्त की. पत्र संख्या ११४ । इसके अंत में
१ श्रीमद्बुद्धिमुनेर नुज्ञया, मुद्रणाऽयं लिपिकर्ता-पण्डित-गौरी शङ्कर-तनय-द्विवेयुपाहमदनकुमार शर्मा । फलोदी (फलवृद्धि) वास्तव्यः । वैकमोरे । २००७ तमीये वर्षे पोत्र शुरु १३ मन्दे च ॥ श्री गुर्विष्टप्रसादाच्छुभं भवतु ॥
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