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निवेदन।
पत्रकतामा
सूत्र दीपिका।
बन्धनों का मूलभूत कारण समज के विशिष्ट संयम अनुष्ठान द्वारा क्रिया करके आत्मा को-कों के बन्धन से मुक्त करो।
यहां पर अन्य दर्शन वाले कोइ एक केवल ज्ञान से मोक्ष मानते है । और दुसरे दर्शनावलम्बी केवळ क्रियासे हि मोक्ष मानते हैं।
परंतु जैनदर्शन में तो "उमाम्यां ज्ञानक्रियाभ्यामेव मुक्तिः" ज्ञान और क्रिया दोनो मिलने पर ही मोक्ष है, ऐसा ज्ञानपूर्वक क्रिया द्वारा प्रत्यक्ष सिद्ध करते है।
अतः प्रस्तुत सूत्र-कृताह में द्रव्यानुयोग प्रधान होने से नय-निझेपादिक के स्वरूपों का वर्णन करते समय तिनसो त्रेसठ ( ३६३ ) पाखण्डियो का मत का खण्डन करके, इस ग्रंथ में अहंत भगवान् के सिद्धान्तो का सुंदरतापूर्वक प्रतिपादन किया है।
इस ग्रंथ के पठपाठन से भव्य जन जैनदर्शन के सिद्धांतों (द्रव्यानुयोग) का विस्तृत रूप से ज्ञान प्राप्त कर सकते है।
प्रस्तुत ग्रंथ मूल-नियुक्ति-श्रीशीलानाचार्य कृत टीका तथा श्रीहर्षकुलगणिकृत दीपिकासह प्रथम छप चुका है।। शानी हो तो उसका सार यही है कि वह अपने आत्मज्ञान के कारण विश्वविज्ञान का उपभोग करता हुआ किसी की हिंसा नहीं करना । किसी भी प्राणी को न सताता है, न मारता है और न दुःख ही देता है। यहि अहिंसा सिद्धान्त है। इसी में विज्ञान का अन्तर्भाव हो जाता है। एवं खनाणिणो सारं जन हिंसह किंचण । अहिंसा समयं चेव एयावन्तं वियाणिया ।
सूत्रकृतांग ।।१।४।१०। आधुनिक विज्ञान और अहिंसा । लेखक:-गणेशमुनि शानि,
सम्पादक:-मुनि कान्तिसागरजी
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