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________________ पुष्पथं स्वजनाद्यर्थ वा व्यापादयति, शेषं पूर्ववत ॥८॥ से एगइओ साउणियभावं पडिसंधाय सउणियं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ ॥९॥ ___ व्याख्या-कश्चिदघमोपायजीवी ' शकुना' लावकादयस्तैश्चरति, ततश्च तन्मासाद्यर्थी 'शकुनि' पक्षिणं [अन्य वा] तित्तिरादिकं व्यापादयति, शेषं पूर्ववत् ॥९॥ से एगइओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति ॥१०॥ व्याख्या-कश्चिन्मात्स्यिकमावं प्रतिपद्यते, तद्भाव प्रतिपद्य जलचरजीवान् व्यापादयति, शेषं पूर्ववत् ॥१०॥ से एगइओ गोघायगभावं पडिसंधाय गोणं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ ॥११॥ व्याख्या-यथा कश्चित्क्रूरकर्मकारी गोघातकमावं प्रतिपद्यते, शेषं पूर्ववत् ॥ ११ ॥ से एगतिओ गोपालगभावं पडिसंधाय तमेव गोणं [अन्नयरं वा तसं पाणं] परिजविय Jain Education Indgi For Private Personal use |www.jainelibrary.org
SR No.600140
Book TitleSuyagadanga Sutram Part-2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1962
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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