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________________ मानुष्यभवसूक्तानि ७ __ न्यग्रोधे दुर्लभं पुष्पं, दुर्लभं स्वातिजं पयः । दुर्लभं मानुषं जन्म, दुर्लभं देवदर्शनम् ॥१॥ अनाण्यपि रत्नानि, लभ्यन्ते विभवैः सुखम् । दुर्लभो रत्नकोव्याऽपि, क्षणोऽपि मनुजायुषः॥२॥ हतं मुष्टिभिराकाशं, तुषाणां खण्डनं कृतम् । यन्मया प्राप्य मानुष्यं, सदर्थे नादरः कृतः ॥३॥ एगदिणे जे देवा चयंति तेसिपि माणुसा थोवा । कत्तो मे मणुयभवो इय चिंतइ सुरवरो दुहिओ ॥४॥ केऽप्याप्तमपि पुण्येन, तत्प्रमादपरायणाः । हारयन्ति नराः सुप्ता, इव चिन्तामणिं करात् ॥५॥ मानुष्यमार्यविषयः सुकुलप्रसूतिः, श्रद्धालुता गुरुवचःश्रवणं | उगी ऊगी खय गया संसारि संसारि ॥ ५ ॥ वरसह ते गणि दीहढा जे जिणधम्मिहिं सार । तिमि सया उण सही ईम्हइ गणइ गमार ॥ ६ ॥ धणु चिंतं तो धम्मु करि, धम्मेण य धणु होइ । धणु चितंतओ जइ मरइ, दुण्हवि इकुन होइ ॥७॥ भाउ करे विणु ओभ करेसु, जन्न विद्वत्तं तं विढवेसु । अच्छा हिअयं चिंताभरि, जं मरिअव्वं तं बीसरिअं॥ ८॥ दीहा जंति वलंति नहि, जिम गिरी निज्मरणाई। लहु मोलगी जिअ ! धम्म करि, सुअहं निचितड काई ॥९॥ मोह न मिल्हइ घरतणओ, नइ सिरि पलिआ केस । वलि बलि जिणधम्मह तणा, को देसिइ उवएस? ॥१०॥ निजीवह उवएसडा, मुहिआं जंति न भंति । पाणी घणु विलोडिअइ, कर चोपडा न हुंति ॥ ११॥ अवसरू देषी धंमु करि, लीजइ जुब्बण लांपु । जइ जमु देसइ दीहडा, तओ जर देसि झांप ॥ १२॥ जइ पूगी पंचास पालि परत्तह बंधीइ । विभवह अनइ बिलास, आस न कीजइ आसणी ॥ १३ ॥ पावहसरिसी | मित्रडी, लोहटसरिसओ नेहु। धम्मह सरिसड़ रुसणउं, बूडत कुण संदेहु ॥ १४॥ पगलगपाखर जाहं, आडी तणी अजाणि वा । गुरु उपदेसो ताई, लाखी तूला गइ नहि ॥३५॥ भारीकम्मा जीवडा, जइ बुज्झसि ता बुझ । सव कुटुंबडं खाइसिइ, माथइ पडिसिइ तुज्झ ॥१६॥ हाथ घसइ भुईआर इणइ, जीभ तालुं दिन्नु । मरणवेलां संभरह, मई नहु कीधउ धम्मु ॥ १७ ॥ Jain Education a l For Privale & Personal use only new.jainelibrary.org
SR No.600137
Book TitleSukta Muktavali
Original Sutra AuthorPurvacharya
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1922
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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