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श्राद्धप्र
ति० सूत्रम्
॥१५४॥
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तहवि । तीए नाओ तस्संचाराइपउत्तचित्ताए ॥ ८७ ॥ तो तीए धुत्ताए कवि जाणित्तु गुत्तमवि खतं । | संभाविअं भडेहिं तद्दारं कुगइदारं व ॥ ८८ ॥ पुव्विंचिअ सज्जाओ धूवघडीव धूमघडिआओ । सयराहं बहुआओ झडत्ति उग्घाडिआओ अ ॥ ८९ ॥ तद्धमसमूहेणं तन्नयणा भग्गसलिलभंड व । गलिआ तहा जहा तग्गयं गयं अंजणं सर्व्वं ॥ ९० ॥ तंमि घर्णमि व नयणंजणंमि सङ्घमि विहडिअंमि लहुं । सो संजाओ पयडो पडो के उच्च लोआणं ॥ ९१ ॥ तो निग्गंतुमसक्को सिग्धं वधु निग्घिणभडेहिं । बंधाविओवि तीए बुद्धी धुत्तीइ कावि अहो ॥ ९२ ॥ ता तीइ निअपइन्नापूरणओ पूरिआइ हरिसेण । छागुन इमो बद्धो समप्पिओ दंडपासिस्स ॥ ९३ ॥ राया मउत्ति तेणवि सयं पहाए वहाय आइहो । निवइअभावे कज्जं कुणंति अहिगारिणो चेव ॥ ९४ ॥ जमपुरिससमाणेहिं पाणेहिं निग्घिणेहिं अह चोरो । खरआरोहणखर काहलपमुहविडंबणापुत्रं ॥ ९५ ॥ लोएहिं मिलिएहिं कलिएहिं कुऊहलेण कोहेणं । हीलिजंतो तज्जिजंतो नीओ पुरा बाहिं ॥ ९६ ॥ जुअलं ॥ अह सो चिंतह चोरो हहा ! किमेसो अणत्थवित्थारो ? | सुहसउणेहिवि विहिअं जायं अहियं अहह | किमिमं ? ॥ ९७ ॥ अहवा मह पावेणं सउणा सयणा य विहडिओ नूणं । कह अन्नह नहु इण्हि रिवुं व मं रक्खए कोवि ॥ ९८ ॥ किं वा किंवागफलंपिव पावं पढममेव अइमहुरं । परिणामे पुण विरसं न देइ दुसहं दुहं | इहवि ॥ ९९ ॥ छुट्टेम कहवि ता जइ इमाउऽणत्थाउ तो चए पावं । सर्व्वं दर्वव दुसहं कहं नु वा छुट्टणं इहि ? ॥ १०० ॥ इअ चिंतिरो स दीणं पयंपिरो कंपिरो अ पाणेहिं । जमदाढाएव महासूलाए अंतिअं नीओ ॥ १ ॥
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२७माथासामा
यिके धन
मित्रज्ञातं
गा.
७३-२०१
॥१५४॥
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