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________________ Jain Education In पुरे । निरुद्धा वामहत्थेण, वेमई नाम खत्तिओ ॥ १६ ॥ ता के उमंजरीए, इमाइ धूयाइ एस उचियवरो । इय वृत्तं से हरिणा, अणिच्छमाणस्स सा दिण्णा ॥१७॥ वीरोवि कण्ह भीओ, तं परिणिय नियगिहंमि नेऊणं । सुस्सुसं कुणइ सयं, सपरिय| णो तीइ रयणिदिणं ॥ १८ ॥ हरिणा कयाइ पुट्ठो, किं तुह आणं करेइ मे धूया । वीरो भणइ अहं खलु, आणाकारी तुह सुआए | ॥ १९ ॥ भणइ हरी जइ कम्माई, तं न कारेसि नत्थि तुह ठाणं । वीरो हरिचित्तण्णू, तो गिहपत्तो तयं भणइ ॥ २० ॥ पझ (ज) णियं कुणसु लहुं, साविहु पडिभणइ कोलिया अप्पं । न मुणसि तो वीरेणं, रज्जूए ताडिया वाढं ॥ २१॥ तो सा गंतु | साहइ, रुयमाणी तं हरिस्स भणइ तुइमो । सामित्तं मुत्तु तया, दासत्तं मग्गियं तुमए ॥ २२ ॥ सा भणइ ताय इण्हिपि, मज्झ सामित्तणं तयं कुणसु । भणइ हरी जड़ नवरं, मणिस्सइ वीरओ एयं ॥ २३ ॥ तीए वाढं भणिओ, कण्हो वीराउ मोइऊण तयं। | पव्यावेई पहुणा, निक्खमणमहूसवं काउं ॥ २४ ॥ अन्नया अरिट्ठनेमिसामी समोसरिओ। राया निग्गओ । अट्ठारसवि समण| साहस्सीओ वासुदेवो वंदिउँकामो भट्टारयं पुच्छइ 'अहं साहू कयरेणं वंदणेणं वंदामि, 'केण पुच्छसि' दव्चवंदणएणं भाववं | दणएणं' सो भणइ 'जेण तुम्भे वंदिया होह' सामी भणइ 'भाववंदणेणं' बंदा मि (हि) ताहे सव्वे साहुणो वारसावत्तवंदणेणं | वंदामि (इ) रायाणो परिसंता ट्ठिया, वीरओ वासुदेवाणुवत्तिए वंदइ। कण्हो बद्धसेओ से जाओ भट्टारओ पुच्छिओ। जहा अहं | तिहिं सङ्केहिं संगामस एहिं न एवं परिसंतो म्हि सामी भणइ तुमे खइयं सम्मत्तं उग्घा (पा) डियं, तुमए एयाए सध्धाए ति | त्थयरनामगोयं कम्मं निव्वत्तिय जया विध्धो पाओ तथा निंदणगरिहणाए सत्तमाए पुढवीए वध्धिलयं आउयं उब्वेतेण For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600125
Book TitleVandaruvruttya Parnamni Shraddha Pratikraman Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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