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वत्तिः
श्राद्धप्र. अहबारबई कइया,वासारत्ते पहू समोसरिओ। पुट्ठो कन्हेण मुणी, विहरंति न कीस वासासु॥१॥भणइ पहू बहुजीवा,
18पुहई वासासु तेण न चरंति। तो विण्हू अंतेउरमज्झगओगमइ चउमासं॥२॥वीरो नाम कुविन्दो, हरिभत्तो सो पवेसमल- ॥३४॥
भंतो। दारं पूइय वच्चइन जिमइ हरिदंसणेण विणा॥३॥ वित्तेवासारत्ते,रायाणो वीरओय संपत्तो। पटो हरिणा वीण्य किं दीससि दबलो अहिय॥४॥वित्तीहिं जहावित्ते,कहिए कन्होवि अखलियपवेसं । वीरं काउंपत्तो. सपरियणो मामिय
णत्थं॥५॥ वंदिय नमि सोउं,जइधम्म तो हरी भणइ एवं । नखमो वयस्स तहविहु, तं कारिस्सामि अन्नेहि अणमोहहस्सामि तहा,अन्नोजो कोवि गिण्हही दिक्खं। नियपुत्तस्स व तस्स उ,निक्खमणमहूसवं काउं॥७॥ इय नियमं चित्तु हरी,
गिहागओ अह विवाहजोगाउ। कन्नाओ पायपडणथमागयाओ भणइ एवं॥८॥वच्छाओ किंभविस्तह,दासीओ अहव सामिणीओ याताओ भणंति अम्हे उ,सामिणीओभविस्सामो॥९॥तो पहुपासे दिक्खं,गिण्हह आमंति ताहि भणियंमि। निक्खमणमहामहिम, काउंपवावए विण्हू ॥१०॥एगाए देवीए, हरिपासे पेसिया निययकन्ना। सिक्खिविऊण तओ सा,साहइ दासी भविस्सामि॥११॥ सोऊण इमं कण्हो,चिंतइ अन्नावि मा कुणउ एवं । तो तेण सण्णिओ वीरओय सुकयं कहइ निययं ॥ १२॥ तक्कहियं सोउ हरी, अत्थाणे भणइ बीयदिवसंमि। निसुणंतु निवा सब्वे, विरियं वीरस्स य कुलं
च॥ १३॥ जेण रत्तफणो नागो, वसंतो बदरीवणे । हओ पुढविसत्थेण, वेमई नाम खत्तिओ ॥१४ ॥ जेण चक्खुहै क्खया गंगा, वहंती कलुसोदयं । धारिया वामपाएणं, वेमई नाम खत्तिओ॥१५॥ जेण घोसवई सेणा, वसंती कलसी
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॥३४॥
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